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________________ न्दूसरा अध्याय ] शेय। २५ स्थूलभावसे देखा जाय तो द्रव्य, गुण, कर्म, सम्बन्ध और अभाव, ज्ञेय ‘पदार्थके पाँच प्रकार निर्दिष्ट हो सकते हैं। अगर पहले इन पाँचमसे कोई एक दूसरेके भीतर न आवे, और दूसरे सब ज्ञेय पदार्थ या विषय ही इन पाँचमेंसे किसी-न-किसीके बीचमें अवश्य ही आजायँ, अर्थात् अगर ये पाँचों प्रकार परस्पर जुदे और सब विषयों में व्यापक हों, तो यह विभाग युक्तिसिद्ध मान लिया जा सकता है । अब देखना चाहिए यह बात होती है कि नहीं। द्रव्यमें गुण रहता है, किन्तु द्रव्य गुण नहीं है—गुण भी द्रव्य नहीं है। 'घटं बड़ा हो सकता है, लेकिन 'घट' द्रव्य और 'बड़ा होना ' गुण, दोनों परस्पर भिन्न हैं। कर्म जो है सो द्रव्य या द्रव्यके गुण द्वारा संपन्न हो सकता है, लेकिन कर्म द्रव्य नहीं है, गुण भी नहीं है। बड़ा घट गिर गया, इस जगह 'गिर जाना' कर्म घट और बड़ा होना, दोनोंसे पृथक है। बड़े घड़ेके ऊपर छोटा घड़ा है, यहाँ पर ' ऊपर-तले' यह सम्बन्ध दोनों घट और उनके गुण और कर्मसे भिन्न है । यहाँ घड़ा नहीं है, इस जगह घड़ेका अभाव घट और उसके गुण, कर्म या सम्बन्धसे भिन्न है। अतएव ऊपर कही गई पहली बात ठीक जान पड़ती है। ___ अब दूसरी बात ठीक है या नहीं, अर्थात् ज्ञेय पदार्थ या सब विषय उक्त पाँच प्रकारों में से किसी एकके भीतर अवश्य आ जाते हैं या नहीं, यह देखनेकी जरूरत है। यह परीक्षा उतनी सहज नहीं है, क्योंकि यहॉपर सभी ज्ञेय पदार्थों या विषयोंकी परीक्षा करनी है। यह तो अनायास ही देखा जाता है कि बहिर्जगत्के सब पदार्थ या विषय उक्त पाँच प्रकारोंके ही अन्तर्गत हैं। लेकिन यह प्रश्न यहाँ उठ सकता है कि देश और काल ये दोनों पदार्थ भी ऐसे ही हैं या नहीं ? देश और काल केवल ज्ञाताके ज्ञानके नियम न होकर अगर ज्ञेय विषय हों, तो उनकी द्रव्यमें गिनती होगी। यदि देश और काल केवल ज्ञानके नियम अर्थात् अन्तर्जगत्के विषय हैं तो उनकी बात आगे कहीं जाती है । शक्तिको द्रव्य और गुण दोनों श्रेणियों में ग्रहण किया जा सकता है। अगर शक्तिको द्रव्यमें संनिहित सोचा जाय तो वह गुण है, और अगर उसे द्रव्यसे अलग देखा जाय तो शक्तिकी गिनती द्रव्यमें होनी चाहिए। अन्तर्जगत्के विषयोंमें, स्मृति, कल्पना या अनुमानके द्वारा उपलब्ध सब विषय, उनकी बहिर्जगत्की प्रतिकृति जिस जिस प्रकारके अन्तर्गत है उसी
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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