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________________ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भागह उसके साथ ही मनमें इस भावका उदय होता है कि उनकी अनन्तशक्ति हमें कर्ममें संचालित करती है, और हम उनकी पूर्णता और पवित्रताकी छायामें हैं। इससे बढ़ कर आध्यात्मिक उन्नतिका श्रेष्ठ उपाय और क्या हो सकता है? ___ यह चाहिए-वह चाहिए, कहकर ईश्वरके निकट प्रार्थना करना अकर्तव्य है। इसका कुछ ठीक नहीं है कि हम जो चाहेंगे वही पावेंगे । किन्तु यह बात निश्चित है कि हम अगर कोई अनुचित प्रार्थना करेंगे तो वह पूर्ण नहीं होगी। यहीं तक प्रार्थना विधिसिद्ध है कि हमारा जिसमें मंगल हो वही हम पावें, वही हो। एकाग्रभावसे यह प्रार्थना करनेसे हमारी एकाग्रता ही हमें वह फल दिला देगी । उपासनाके समय अपनी इच्छाके अनुसार प्रार्थना न करके ईश्वरके ऊपर ही संपूर्णरूपसे भरोसा रखनेका एक सुन्दर दृष्टान्त ब्राह्मणोंके 'सन्ध्यावन्दन' के एक मन्त्रमें है। आपोदेवतासे-अर्थात् जो ऐशी शक्ति जीवको भीतर और बाहरसे पवित्र करती है उस शक्तिसे-उपासक कहता है“यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिव मातरः"(१)। अर्थात् तुम्हारे जो सर्वश्रेष्ठ मंगलकर रस हैं सन्तानकी हितकामनासे पूर्ण माताकी तरह, उन रसोंका भागी हमें बनाओ । मतलब यह कि माता जैसे सन्तानको, वह उसे जाने या न जाने, वही देगी जिसमें उसका भला होगा, चैसे ही ईश्वर भी अपने उपासकको, वह उसे जाने या न जाने, वही दें जिसमें उसका कल्याण हो। जिस जातिकी जैसी प्राचीन पद्धति है उसीके अनुसार, यथायोग्यरूपसे, उपासना होना अच्छा है । वेदमन्त्रोंमें कोई दैवशक्ति है, यह मैं नहीं कहता, किन्तु उनके अद्भुत रचनासौन्दर्यका खयाल करनेसे और इतने दिनोंतक हमारे पूर्वपुरुषोंके द्वारा उनका प्रयोग होते रहने पर ध्यान देनेसे यह अवश्य . ही स्वीकार करना पड़ता है कि उनमें भावोद्दीपनकी शक्ति असाधारण है। यह सच है कि असल उपासना मनका विषय है, वह वचनसे परे अर्थात् अनि र्वचनीय है। किन्तु अगर उपासनामें भाषाका प्रयोग करना हो, तो इसमें कुछ भी सन्देह नहीं प्राचीन पद्धति ही प्रशस्त है। (१) ऋग्वेद १० मण्डल, ९ सूक्त, १-३ ऋचा देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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