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________________ ज्ञान और कर्म। [ द्वितीय भाग rrrrr.mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm प्रतियोगियोंके लड़ाई-झगड़ेसे और अराजकताके कारण होनेवाले चोर-डाकओंके उत्पीड़नसे छुटकारा पाकर, और अंगरेजोंके सुशासन और न्यायपरतासे आश्वस्त होकर, अधिकांश भारतवासियोंने बिना किसी तरहकी आपत्तिके इस साम्राज्यकी अधीनता स्वीकार कर ली। ब्रिटन और भारतका वह राजा-प्रजा सम्बन्ध, डेढ़ सौ वर्षसे अधिक हुए जबसे चला आ रहा है । और, उससे अनेक सुफल भी उत्पन्न हुए हैं, जिनमेंसे दो-चार विशेष रूपसे उल्लेख योग्य हैं । जैसे—निरापद होकर शान्तिके साथ निष्पक्ष विचारप्रणालीकी अधीनतामें अवस्थिति, पाश्चात्य विज्ञान अर्थनीति और राजनीतिक विषयोंकी शिक्षा मिलना, रेलगाड़ीके द्वारा और सर्वत्र परिचित अँगरेजी भाषाकी सहायतासे सब जगह जाने-आने और रहनेका सुभीता और उसके द्वारा सब भारतवासियोंके मनमें एक अभिनव जातीय भावका उदय । इन्हीं सब कारणोंसे भारतवासी लोग ब्रिटिशसाम्राज्यके निकट कृतज्ञतापाश में बँधे हुए हैं। यद्यपि उस साम्राज्यकी अधीनतामें रहना पराधीनता ही है, किन्तु तो भी यदि दोनों पक्ष कुछ विवेचनाके साथ चलें, तो वह पराधीनता उस स्वाधीनताके साथ, जो मनुष्यमात्रके लिए आवश्यक हुआ करती है, इतनी अविरुद्ध या अल्पविरुद्ध है कि उसके लिए कष्ट मालूम पड़नेका कोई कारण नहीं है। ब्रिटिशराजतन्त्रके मूलसूत्रके अनुसार ऐसी कोई बात नहीं है कि भारतवासी उस राजतन्त्रके बहिर्भूत ही रहेंगे । बल्कि उसके विपरीतही दृष्टान्त देख पड़ते हैं। हालमें (जब यह पुस्तक लिखी गई थी) उत्तरोत्तर दो भारतवासी बड़ेलाट साहबकी लेजिस्लेटिव कौन्सिलके मेंबर बनाये गये हैं, और इसकी संपूर्ण आशा की जाती है क्रमशः आगे चलकर भारतवासियोंको देशकी शासनप्रणाली चलानेके अधिकतर अधिकार प्राप्त होंगे, यद्यपि यह संभावना नहीं है कि अँगरेजोंके साथ मिलकर भारतवासी कभी एक जाति बन जायँगे, तथापि यह संभावना यथेष्ट है कि शीघ्रही भारतशासनमें यथायोग्य अधिकार पाकर वे अँगरेज राजाके सहकारी हो सकेंगे । जिसमें यह फल, जिसकी संभावना है, शीघ्रही फले, इसके लिए उद्योग करना हरएक देशहितषीका कर्तव्य है। उस उद्योगकी राहमें दोनोंही पक्षोंके भ्रमसे उत्पन्न जो बाधा-विघ्न हैं उन्हें दूर करना अत्यन्त आवश्यक है । अँगरेज राज• 'पुरुषोंमेंसे किसी किसीको यह एक भ्रम है कि " प्राच्य जाति आडम्बर और
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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