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________________ पाँचवाँ अध्याय ] राजनीतिसिद्ध कर्म। अभावका अनुभव अधिक करना भी नहीं पड़ता । लेकिन और एक आशंका होरही है। हमने अपने पूर्वपुरुषोंके पाससे जो अमूल्य अलौकिक सम्पत्ति पाई है, उस आध्यात्मिक उन्नतिको, वैषयिक उन्नतिके लोभमें पड़कर, कहीं किसीदिन हम न गँवा बैठे । ऐसा होगा, तो फिर हम वास्तव में अवज्ञाके पात्र होजायँगें । विज्ञानके अनुशीलनसे वैषयिक उन्नति और सामाजिक रीति-नीतिके संशोधनसे शारीरिक उत्कर्ष और वैषयिक उन्नति जिसके द्वारा प्राप्त हो, वह शिक्षा सर्वथा आवश्यक है, किन्तु हमें स्मरण रहे कि उस शिक्षाके लिए आध्यात्मिक शिक्षा न भुला दी जाय । राजनीतिक विषयोंकी आलोचनाके साथ साथ पाश्चात्य कवि गोल्डस्मिथकी निम्नलिखित कविता हमें स्मरण रखनी चाहिए " How small, of all that human hearts endure, That part which laws or kings can cause or cure." Goldsmith's Traveller अर्थात्-इस संसारमें आकर मनुष्यका हृदय जितना दुःख सहता है, उसका बहुत ही छोटा हिस्सा राजाके कानूनके अधीन है, जिसे वह दे सकता है या दूर कर सकता है। ब्रिटन और भारतका सम्बन्ध । ऊपर विजेता और विजितके बारेमें राजा-प्रजा-सम्बन्धकी जो बातें कही ई हैं, वे सब साधारणतः ब्रिटन और भारतके सम्बन्धमें बहुत कुछ घटित होती हैं। अब यहाँपर ब्रिटन और भारतके राजा-प्रजा-सम्बन्धके विषयकी दोएक बाते विशेष रूपसे कही जायेंगी । अवश्यही उन्हें संभ्रम-संमानके साथ संयत भावसे कहूँगा। आशा करता हूँ, उन बातोंसे कोई भी पक्ष असन्तुष्ट न होगा। भारतवर्ष जिस समय इंगलेंडकी अधीनतामें आया था, उस समय भारमें मुसलमानसाम्राज्य पतनोन्मुख हो रहा था, हिन्दुओंमें महाराष्ट्र लोग उठनेकी चेष्टा कर रहे थे, राजपूत लोग भी बुरी हालतमें नहीं थे, सिख लोग फेर अभ्युदयके लिए उठ खड़े होनेका उद्योग कर रहे थे, और फ्रेंच लोग भी भारतसाम्राज्य पानेके लिए अंगरेजोंके प्रतिद्वन्द्वी थे। क्रमशः भारतमें ब्रिटिश जाम्राज्य अच्छी तरह स्थापित हो जानेपर, प्रधानता प्राप्त करनेके लिए अनेक ज्ञा०-२२
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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