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________________ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग गुण या दोष है। युद्धका अभ्यास रखनेवाले दृढ़-प्रकृति यूरोपियनों में भी यह बात देखी जाती है, और इसीसे कुछ कुछ आशाका संचार होता है कि अंतको एक दिन पृथ्वी परसे यह भयंकर अमंगल (युद्ध) एकदम उठ जायगा। सुप्रसिद्ध काउंट टाल्सटाय और महात्मा स्टेड साहबने युद्ध-निवारणके लिए अनेक युक्तिसंगत बातें लिखी और कही हैं। उन्हें 'एकदेशदर्शी असंयतचित्त आन्दोलनकारी कहकर अगर कोई उनकी बातोंको उड़ा देना चाहे, तो सुप्रसिद्ध अनेकशास्त्रज्ञ धीरमति अध्यापक ह्यवेलकी बातें उस तरह अग्राह्य नहीं की जा सकती। उन्होंने किसी विवादके अवसर पर या किसी पक्षका समर्थन करने के लिए वैसी बातें नहीं कही हैं। अपने विल (वसीयतनामें) में वे उन बातोंको लिख गये हैं, और केवल लिख ही नहीं गये, बल्कि अपने कहनेके अनुसार उन्होंने काम भी किया। उन्होंने अपने विलमें लिखा है कि उनकी दी हुई जायदादकी आमदनीसे सालाना ५०० पाउंड (७५०० रुपए) वेतन देकर केंब्रिज विश्वविद्यालय एक जातीय विधानका अध्यापक नियुक्त करे और वह अध्यापक जातीय व्यवहारशास्त्रके अनुशीलनमें नियुक्त रह कर " ऐसे नियमके निर्धारणका यत्न करे, जिसके द्वारा युद्धके अमंगलका -हास हो और अन्तको जातियोंमें परस्पर होनेवाला युद्ध एकदम बंद हो जाय।" (१) युद्धके सम्बन्धमें एक और दुःखकी बात यह है कि प्राचीनकालमें शत्रुके प्रति धर्मयुद्ध में जिस वीरोचित व्यवहारकी विधि थी, उसका ज्ञानकी उन्नति के साथ साथ उत्कर्ष नहीं हुआ, बल्कि जान पड़ता है कुछ अवनाते ही हुई है (२)। इस समय किसी किसीके मतमें युद्ध में कपट-व्यवहार करना निषिद्ध नहीं है (३) विज्ञानकी चर्चा और अनुशीलनके द्वारा जो सब भयानक शस्त्र-अस्त्र तैयार करनेके उपाय निकाले जा रहे हैं उनका जहाँ तहाँ प्रयोग होता है। . इतने दिन तक पृथ्वी और सागर ही युद्धस्थल थे। इस समय आकाशको (१) Cambridge University Calendar for 1903-1, Page 556 देखो। (२) महाभारतके शान्तिपर्वका ९५ अध्याय देखो । (3) Wheaton's International Law, 3rd Ed. Pt. 4, ch. 11, और Sidgrick's Politics, P. 255 देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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