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________________ १७० ___ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग इस समय प्रेसोंके द्वारा अन्थोंके प्रचारमें सुभीता हो गया है, और लिखे पड़े लोगोंकी संख्या भी बढ़ गई है। इस कारण जो ग्रन्थ प्रकाशित होते हैं उन्हें अनेक लोग पढ़ते हैं, और यह सुखका विषय है, इसमें सन्देह नहीं। किन्तु यह लगातार सुखहीका विषय नहीं है, इसमें दुःख भी शामिल है। कारण, अनेक ऐसे ग्रन्थ लिखे जाते हैं जिनको लिखे जानेका कारण केवल कुरुचिकी प्रेरणा है, और जिनसे कुप्रवृत्तियोंको उत्तेजना मिलती है और सहज ही समझमें आनेवाली तथा शुरूमें आनन्द देनेवाली होनेके कारण ऐसी ही पुस्तकें अधिक पढ़ी जाती हैं। जिनमें स्पष्टरूपसे अश्लीलता भरी है वे पुस्तकें राजशासनके अधीन हैं, और सभ्य समाज प्रकाश्यरूपले उन्हें पढ़ नहीं सकता । स्पष्ट कुष्ठरोगग्रस्त आदमीकी तरह लोगों के द्वारा वे परित्यक्त होती हैं। लेकिन जिन पुस्तकोंमें अश्लीलता प्रच्छन्न भावसे रहती है, वे अलक्षित कुष्ठरोगीकी तरह परित्यक्त न होकर, सबके पास आ-जासकती हैं, और अन्तको उनकी संक्रामक व्याधि सर्वत्र फैलकर तरह तरहके अनिष्ट करती है। सामाजिक और राजनीतिक विप्लव । ज्ञानवृद्धि के साथ साथ अशुभकी वृद्धिका और एक उदाहरण उद्धत उच्छृ. खलता और सामाजिक व राजनीतिक विप्लव है।। जन-समाजमें जितने दिन ज्ञानकी चर्चा थोड़ी रहती है उतने दिन सामाजिक और राजनीतिक आन्दोलन भी कम ही रहता है, और विशेष गुरुतर कारण उपस्थित हुए विना सामाजिक तथा राजनीतिक विप्लव घटित नहीं होता । ज्ञानवृद्धिके साथ साथ लोग अपने अपने स्वार्थ, अपने अपने अधिकार और देशके लिए क्या शुभ है और क्या अशुभ है-इन सब विषयोंके आन्दोलनमें प्रवृत्त होते हैं, साथ ही अपना और देशका मंगल करने तथा अमंगल मिटानक उपाय सोचते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि ये सब ज्ञानलाभके सुफल हैं। किन्तु इनके साथ ही अति अनिष्ट करनेवाले कुफल भी मिले हुए हैं । कुछ अल्पबुद्धि, अस्थिरचित्त, उद्धत, अविवेचक लोग समझते हैं कि वर्तमान अवस्थामें जो कुछ असुखकर है उसे एकदम समाज या राजतन्त्रसे छलबलकौशलसे, चाहे जिस तरह हो, दूर करके, उसके बदलेमें, उनकी कच्ची समझमें जो कुछ सुखकर है उसके स्थापनाकी चेष्टा ही समाजसंस्कारक और
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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