SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवाँ अध्याय ] ज्ञान-लाभका उद्देश्य। १६७ क्षमता बढ़ती है। मनुष्य आदिमें असभ्य अवस्थामें सुसजित निवासस्थान, स्वादयुक्त आहार और सुन्दर.पोशाकके अभावका अनुभव नहीं करता, और अनुभव करने पर भी उसकी पूर्ति करनेमें असमर्थ रहता है । क्या बच्चा और क्या असभ्य मनुष्य, सभी अनुभव करनेकी शक्तिके अनुसार जो सुखदायक है उसे पानेकी इच्छा करते हैं, और उसे न पाने पर उसके अभावका अनुभव करते हैं। किन्तु कौन पदार्थ सुखदायक है, इस विषयकी अनुभवशक्ति ज्ञान बढ़नेके साथ साथ परिवर्तित और परिवर्तित होती रहती है, और सुख तथा सुखदायक पदार्थों का आदर्श भी क्रमशः उच्चसे उच्चतर होता जाता है। किन्तु केवल इसी लिए यह बात नहीं स्वीकार की जा सकती कि भोगकी लालसा बढ़ाना और बहुत संख्यामें भोग्य वस्तुएँ तैयार करना, या उन्हें भोग करना सभ्यताका लक्षण अथवा सुखका कारण है। पहले तो यह याद रखना चाहिए कि भोगजनित सुख क्षणिक होता है, और उसके द्वारा जो. भोगकी लालसा बढ़ती है वही फिर सुखके विनाशका कारण हो उठती है। मनु भगवानने सत्य ही कहा है न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्णवर्मैव भूय एवाभिवर्द्धते ॥ (-मनु २।९४) अर्थात् भोगकी वासना भोग करनेसे कभी शान्त नहीं होती। घीकी आहुति पड़नेसे अग्निकी तरह वह उससे और भी अधिक प्रज्वलित हो उठती है। दूसरे, अनेक प्रकारके अभाव अनुभव करनेकी, उत्तम उत्तम पदार्थोंका उपभोग करनेकी, आर वे सब वस्तुएँ तैयार करनेकी शक्तिका रहना वाञ्छनीय है सही, लेकिन उस शक्तिका निरन्तर व्यवहार कभी वाञ्छनीय नहीं है । अच्छे खाद्यका अभाव अनुभव करनेकी, और चखकर बुरे खाद्यको त्याग करनेकी, और खाद्य पदार्थके रसका सामान्य प्रभेद जाँचनेकी शक्ति रहना वाञ्छनीय है, किन्तु केवल इसी लिए दिनरात अच्छे खाने-पीनेके पदार्थोंके खाने-पीने में ही लगे रहना वांछनीय नहीं है। यहाँ प्रश्न उठ सकता है कि अच्छे खाद्य पदार्थ तैयार करनेकी शक्तिके निरन्तर व्यवहारमें दोष क्या है ? इसका उत्तर यह है कि
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy