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________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय । कि विद्यार्थीके मनमें भक्ति उत्पन्न होती है, वह शिक्षककी ओर आकृष्ट होकर उसके उपदेशको ग्रहण करने में अधिक आग्रह दिखाता है। लेकिन वह सहानुभूति न होने पर, एक ओर तो यह होता है कि शिक्षक जो है वह छात्रकी कमीको पूरा करनेका यथायोग्य यत्न नहीं करता, और दूसरी ओर यह होता है उस यत्नके न होनेके कारण विद्यार्थी भी शिक्षकका उपदेश ग्रहण करनेमें वैसी तत्परता नहीं दिखाता। और एक बात भी याद रखनी चाहिए। शिक्षक अगर विद्यार्थीको जातिमें हीन या मंदबुद्धि समझता है, तो दुरूह शिक्षाक कार्यमें जिस दृढ यत्न की जरूरत है, उसका प्रयोग करनेमें उसे अधिक उत्तेजना नहीं रहती। क्योंकि वह सोचता है, उसके शिक्षा-कार्यकी निष्फलताका कारण उसकी अपनी अयोग्यता नहीं बल्कि विद्यार्थीकी अयोग्यता है। __ उपदेश देने और लेनेवाले दोनोंके बीच सहानुभूतिके बारेमें एक सुंदर कहानी है। कोई गरीब मुसलमान अपने पुत्रको लेकर हजरत महम्मदके पास आया और उसने कहा-“ मेरा यह लड़का बहुत शक्कर खाता है, लेकिन मैं उतनी शक्कर लाकर खिलानेकी हैसियत नहीं रखता; बताइए, मैं क्या करूँ ? " महम्मदने कहा-एक पखवारके बाद आना । पंद्रह दिन बाद वह मुसलमान फिर अपने लड़केको लेकर महम्मदके पास आया। महम्मदने उस लड़केको बड़ी खूबीके साथ तेजस्वी भाषामे शक्कर खाना छोड़ देनेका उपदेश दिया। पिता और पुत्र दोनोंने उस आज्ञाको शिरोधार्य किया। लेकिन पितासे न रहा गया, उसने पूछा, यह साधारण उपदेश देनेके लिए खुद पैगंबर साहबने एक पक्षका समय क्यों लिया ? महम्मद साहबने हँसकर कहा-मैं खुद शक्कर बहुत खाता था, सो जबतक खुद शक्कर खाना न छोड़ लेता तबतक औरको शक्कर खाना छोड़ देनेकी आज्ञा देना अन्याय होता । मैंने पंद्रह दिनमें शक्कर खाना एकदम छोड़ दिया, तब औरको वैसा करनेकी आज्ञा दी। अब मेरी आज्ञाका असर तुम्हारे लड़के पर पड़ेगा। अगर मैं न छोड़ता और उसे छोड़नेका उपदेश देता तो कभी असर नहीं पड़ सकता था। विद्यार्थियोंको आज्ञा देनेके पहले शिक्षकोंको यह सुंदर भावपूर्ण कहानी याद कर लेनी चाहिए।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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