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________________ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग नये तत्त्वोंके आविष्कारकी शक्ति नहीं प्राप्त होती। उच्च श्रेणीके शिक्षकों में इस शक्तिके रहनेकी आवश्यकता है, और जिसमें उच्च श्रेणीके छात्रों में यह शक्ति पैदा हो वैसी ही शिक्षा देना उनका कर्त्तव्य है। __ यह कहनेकी जरूरत नहीं कि शिक्षकमात्रके लिए शिक्षाशास्त्रमें अभिज्ञताका अत्यन्त प्रयोजन है। शिक्षाविषयक प्रधान प्रधान ग्रन्थ या ग्रन्थोंके अंश (जैसे मनु, प्लेटो, रूसो, लक, स्पेन्सर, बेन इत्यादिके लिखे या रचे हुए ग्रन्थ ) पढ़ना उनके लिए आवश्यक है। सहिष्णुता और पवित्रता ये दोनों शिक्षकके प्रयोजनीय सद्गुण हैं। इनके न रहने पर शिक्षक जो है वह अपने चित्तको स्थिर और शिक्षार्थीके चित्तको श्रद्धायुक्त और अपनी ओर आकृष्ट नही रख सकता। शिक्षाकार्य और शिक्षार्थीके ऊपर अनुराग रहना भी शिक्षकके लिए अत्यन्त आवश्यक है। यह अनुराग अगर नहीं हुआ तो निर्जीव कलकी तरह शिक्षाका काम चलेगा, शिक्षक जो है वह सजीव आग्रहके साथ शिक्षार्थीके अन्त:करणमें नवजीवनका सञ्चार नहीं कर सकेगा। इसी अनुरागके कारण अनेक प्रसिद्ध शिक्षक लोग छात्रकी तरह नित्य पाठाभ्यास करके पढ़ानेके कार्य में लगे रहते हैं, और इस तरह किस बातके बाद क्या बात कहनेसे अच्छा होगा यह पहलेहीसे ठीक कर आनेके कारण ही वे थोड़े समयमें अधिक बातें सिखा सकते हैं। शिक्षकको छात्रके मनमें भक्तिका उद्रेक करना चाहिए; भय पैदा करना विधिविरूद्ध, और अनिष्टकर है। प्रसिद्ध शिक्षातत्त्वके ज्ञाता लकने (१) यथार्थ ही कहा है कि “ हवासे हिल रहे पत्ते पर स्पष्ट लिखनेकी चेष्टा और भयसे कॉप रहे छात्रके मनमें स्थायी उपदेश अंकित करनेकी चेष्टा दोनों समान हैं।" छात्र के साथ सहानुभूति शिक्षकके लिए अत्यन्त आवश्यक है । सहानुभूति होनेसे छात्र के अभाव और अपूर्णताको शिक्षक समझ सकता है और खिझखाए बिना उस अभाव और अपूर्णताकी पूर्ति करनेमें भी समर्थ होता है । शिक्षकको अगर अपने विद्यार्थीसे सहानुभूति है तो उसका फल यह होता है () Some Thoughts on Education देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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