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________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय | १०७ सभी तत्त्व अन्तर्जगत्के निर्विकल्प नियमके विषय हैं । अतएव गणितको आत्मविज्ञानके अन्तर्गत कहना बिल्कुल असंगत नहीं हो सकता । गणित एक अत्यन्त विचित्र विद्या है। इसमें कई एक साधारण सरल स्वयंसिद्ध तत्त्वों के सहारे असंख्य अति अद्भुत जटिल दुर्ज्ञेय तत्त्वोंका निर्णय हुआ है और हो रहा है । उन तत्त्वोंका अनुशीलन असीम आनन्दकी खान है, और वे तत्त्वसमूह विज्ञानकी आलोचना और संसारके अन्यान्य अनेक कार्योंके लिए पूर्ण रूपसे हर तरह उपयोगी हैं। न समझ कर ही लोग गणितकी चर्चाको नीरसं या निष्प्रयोजन समझते हैं। शिक्षककी ताड़ना अथवा शिक्षाप्रणालीकी विडम्बना ही इस धारणाकी जड़ है । थोड़ा यत्न करके यथानियम सीखना शुरू करनेसे सभी लोग थोड़ा बहुत गणित सीख सकते हैं । यह बात नहीं कही जा सकती कि सभी लोग इस विद्यामें या अन्य किसी अन्य विद्यामें समान पारदर्शी हो सकते हैं । किन्तु गणितचचके आनन्दका अनुभव सभी लोग कर सकते हैं और गणितके कुछ तत्त्वोंको सभी लोग सीख सकते हैं, और सभीको यह विद्या सीखनी चाहिए। इस बारे में संदेear कोई यथार्थ कारण नहीं है । मनोविज्ञान अन्तर्जगत् विषयक विद्या है। किन्तु केवल अन्तर्दृष्टिके द्वारा उसके सभी प्रयोजनीय तत्त्वोंका निर्णय नहीं होता । हमारी देहके साथ मनका जैसा घनिष्ठ सम्बन्ध है, और देहकी अवस्थाके ऊपर मनकी अवस्था जिसतरह निर्भर है, उससे कहना पड़ता है कि मनस्तत्त्वका अनुशीलन देहतत्त्वके साथ साथ करना चाहिए, और पाश्चात्य देशों में इस समय यही होत है ( १ ) । इस प्रणालीसे मनोविज्ञानकी चर्चा चले तो विशेष उपकार होने की संभावना है । अनेक जगह मनका विकार और दुर्बलता मस्तिष्कस्नायुआदि देहके अंशोंके विकार और दुर्बलतासे उत्पन्न होती है, और किस जगह ऐसी दुर्बलता हुई है या विकार हुआ है, यह मालूम हो जाय तो शारीरिक चिकित्सा के द्वारा मानसिक विकार और दुर्बलता शान्त करनेमें विशेष सहायता होनेकी संभावना है। इसका एक साधारण दृष्टान्त दिया जा ( १ ) Scripture's New Psychology और Wundt व Ladd आदिके ग्रंथ देखो ।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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