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________________ ज्ञान और कर्म । [ प्रथम भाग रसनाकी तृप्ति या शरीरकी पुष्टि के लिए नहीं है । शरीर और मन दोनोंके उत्कर्ष-साधनके लिए आहार पवित्र, सात्त्विक (२), पुष्टिकर और परिमित होना चाहिए। इस शिक्षाका अत्यन्त प्रयोजन है। पोशाक केवल देह ढकनेके लिए और धूप-जाड़ेसे देहकी रक्षाके लिए नहीं है; पोशाकके साथ मनका भी घनिष्ट सम्बन्ध है। पोशाकका मैला या असंलग्न होना छोड़ देनेका अभ्यास न करनेसे क्रमशः अन्यान्य कामोंमें भी सफाई और संगति पर लक्ष्य कम हो जाता है। पक्षान्तरमें पोशाककी शोभा पर अधिक नजर रहनेसे क्रमशः वृथाका अभिमान बढ़ता जाता है । पोशाकके बारेमें सफाई और संगतिके साथ सुरुचिकी शिक्षा भी आवश्यक है। कसरत कहनेसे सहज ही कुश्ती या दंड-बैठक वगैरहका बोध होता है। किन्तु शारीरिक शिक्षाके लिए वह यथेष्ट नहीं है। उसके द्वारा बल अवश्य बढ़ता है, किन्तु शरीरका बलिष्ठ होना जैसे आवश्यक है, वैसे ही सर्वांशमें उसका कार्यकुशल होना भी अत्यन्त आवश्यक है। अतएव हाथ चलाकर लिखने और चित्र खींचने आदिकी शिक्षाका, और पैर चला कर तेज दौड़ने और न गिर सकनेका भी अभ्यास करना चाहिए । आँख-कान आदिका भी सुशिक्षित होना आवश्यक है। यह बात नहीं होती तो विज्ञानका अनुशीलन और जड़-जगत्का पर्यवेक्षण करनेकी संपूर्ण शक्ति नहीं प्राप्त होती। किसी किसी पण्डितके मतमें बुद्धिकी न्यूनाधिकता अनेक स्थलों पर देखनेसुननेकी शक्तिकी न्यूनाधिकताके सिवा और कुछ नहीं है। देखे और सुने हुए विषयको जो मनुष्य देखते या सुनते ही संपूर्ण रूपसे देख-सुन पाता है, वही उसके मर्मको जल्द समझ सकता है । इसी लिए आँखोंको जल्द देखने और कानोंको जल्द सुननेकी शिक्षा देना हर एकका कर्तव्य है। किस तरह वह शिक्षा दी जानी चाहिए, यह ठीक करना सहज नहीं है और कोई भी शिक्षा फलवती होगी या नहीं, यह सन्देह भी उठ सकता है। किन्तु यह बात कही जाती है कि शिक्षार्थी पुरुष जल्द देखने और जल्द सुनने में मन. लगाकर वारंवार चेष्टा करे तो अभ्यासके द्वारा कुछ सिद्धि प्राप्त कर सकता है । ऐसे अभ्यासका सुफल अनेक जगह देखा जाता है । दर्शन और श्रवणके जिस तारतम्यकी बात यहाँ कही जाती है, वह स्थूल तारतम्यकी बात नहीं, सूक्ष्म तारतम्यकी बात है । उसकी परीक्षा अनेक तरह हो
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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