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________________ प्राचीन आचार्य परम्परा [२५ मन्दिर को घेरे जाने की बात जानी इस भयंकर उपसर्ग के शान्त न होने तक भक्ति में लीन हो गये और जिनेन्द्र देव की स्तुति करने लगे। शिव पिन्डो को राजा ने सांकलों से जकड़ दिया। स्वामी समन्तभद्रजी ने स्वयंभूस्तोत्र के माध्यम से तीर्थकरों का स्तवन किया जैसे ही आठवें तीर्थंकर का स्मरण किया कि पिण्डी फटी तथा चन्द्रप्रभु भगवान का विम्व प्रगट हुवा । शिवकोटि राजा पर इस घटना का प्राश्चर्यकारी प्रभाव हुवा और उन्होंने स्वामी समन्तभद्र का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। समन्तभद्र भी पुनः संयम में स्थिर होकर आचार्य पद पर आरूढ़ हुए एवं अपनी प्राञ्जल प्रतिभा से प्रचुर संस्कृत साहित्य का सृजन कर जैन शासन की महनीय श्रीवृद्धि की। आपके द्वारा अनेकानेक ग्रन्थों को रचना हुई है । जो आज भी उपलब्ध हैं । (१) प्राप्तमीमांसा, युक्त्यनुशासन, स्वयंभूस्तोत्र, स्तुतिविद्या, रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि। प्राचार्य समन्तभद्र की कई रचनाएं वर्तमान में अनुपलब्ध हैं, अनुपलब्ध रचनाओं में जीव सिद्धि, तत्वानुशासन, प्रमाण पदार्थ, कषाय प्राभृतिका, गन्थहस्ती महाभाष्य आदि ग्रन्थ हैं । आचार्य समन्तभद्र पंडितों के पंडित और दार्शनिकों, योगियों, त्यागियों, तपस्वी मुनियों के अग्रणी थे। अतः उनकी प्रख्याति स्वामी शब्द से हुई।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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