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________________ ५३८ ] दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री सन्मतिसागरजी महाराज (अजमेर द्वारा) दीक्षित शिष्य क्षुल्लक श्री वीरसागरजी क्षुल्लिका निर्माणमतीजी RAMAYANANAMANANAMANNAMANAMAMMMMMANIMAL क्षुल्लक श्री वीरसागरजी महाराज आपका जन्म ग्राम खभरा पोस्ट सलेहा जिला पन्ना में हुआ था । आपका नाम हीरालाल था आपके पिताजी का नाम प्यारेलाल सिंघई जैन गोलालारे जाति के थे और माताजी का नाम दुलारी था। आपके २ भाई थे, बड़े भाई का नाम फूलचन्द, छोटे भाई का गयाप्रसाद, आपकी २ बहिनें थीं आपका जन्म स्थान देहाती था इसलिये कम पढ़े लिखे थे और किराना गल्ले का व्यापार करते थे परन्तु वहाँ पर गुजर बसर न चलने से अपने भाई के पास पन्ना आकर रहने लगे यहां पर सत् संगति मिलने पर धर्म की तरफ कुछ श्रद्धा हुई फिर कुछ कारण वश जबलपुर आकर रहने लगे आपका जन्म सम्वत् १९७४ पौष बदी ७ रविवार को हुआ था आपके ३ लड़के व २ लड़कियां हैं आपकी धर्मपत्नी ने भी क्षुल्लिका के व्रत धारण कर लिये हैं जिनका नाम वर्तमान में श्री १०५ क्षुल्लिका निर्वाणमती है । आपने जबलपुर में श्री १०८ मुनि टोडरमलरायजी से २ प्रतिमाएं ली और उन्हीं के साथ श्री सम्मेदशिखरजी की यात्रा की थी। वंदना करते हुए श्री १००८ चन्द्रप्रभुजी की टोंक पर सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किए यानी ब्रह्मचर्य व्रत लिया फिर वहाँ से वापिस कटनी में श्री १०८ मुनि सन्मतिसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ले ली। क्षल्लिका निर्माणमती माताजी __ आपका गृहस्थ अवस्था का नाम केसरबाई था। इनके पिता का नाम काशीप्रसाद था। आपकी शादी हीरालालजी के साथ सम्पन्न हुई। आपने दूसरी प्रतिमा १०८ श्री विमलसागरजी महाराज से ली । पाँचवी प्रतिमा १०८ श्री सन्मतिसागरजी महाराज से सम्मेदशिखरजी में ली तथा सातवी प्रतिमा १०८ श्री महावीरकीर्ति महाराज से गिरनारजी में ली, आपने क्षुल्लिका दीक्षा सं० २०३६ फागुण सुदी २ को सम्मेदशिखरजी में मुनि श्री १०८ सन्मतिसागरजी से ली। *
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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