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________________ दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक श्री सुमतिसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक सुमतिसागरजी का पहले का नाम नन्हें राम था । श्रापका जन्म विक्रम संवत् १६६७ में भाद्रपद शुक्ला पंचमी को घोघा परगना जौरा जिला मुरैना ( म० प्र० ) में हुआ । पके पिता श्री गुरियारामजी थे, जो दुकानदारी करते थे । आपकी माताजी का नाम चन्द्रादेवी था | जाति पल्लीवाल है । आपकी लौकिक व धार्मिक शिक्षा साधारण ही हुई आपके परिवार में चार भाई व एक वहिन थी । विवाह विक्रम सं० १९८० में भागीरथी देवी के साथ हुआ। आपको एक पुत्र और दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था पर तीनों सन्तानें जन्म के साथ ही मरण को प्राप्त हो गई थी । संवत् २००१ में आपकी धर्मपत्नी का भी स्वर्गवास हो गया । [ ५३७ सन्तान का अभाव, गृहणी का वियोग देख आपकी रुचि धार्मिक हुई । आपने शास्त्र, स्वाध्याय, जिनेन्द्रपूजन, सामायिक में मन लगाया । आपने २६ - २ - ६५ को एटा ( उ० प्र० ) में श्री १०८ मुनि सीमन्धरजी से क्षुल्लक दीक्षा ले ली। वोमारी के कारण श्राप विशेष आगे नहीं बढ़ सके । आपने बाल ब्रह्मचारी की अवस्था में लश्कर, ग्वालियर आदि स्थानों पर चातुर्मास किये व क्षुल्लक अवस्था में छतरपुर, दिल्ली, बड़ौत, आदि स्थानों पर चातुर्मास किये । शास्त्र स्वाध्याय पर आप विशेष बल देते हैं । आपने यथावसर घी, नमक, तेल, आदि रसों का भी त्याग किया । आर्यिका राजुलमती माताजी श्री १०५ राजुलमतीजी का गृहस्थावस्था का नाम ज्ञानमती था । आपका जन्म श्राज से ५५ वर्ष पूर्व छोदा ( ग्वालियर ) में हुआ । आपके पिता श्री खूबचन्द्रजी व माता श्री आनन्दीबाई थी । आप पल्लीवाल जाति की भूषरण हैं । आपकी धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा साधारण ही हुई । आपका विवाह छोदा निवासी श्री सीतारामजी से हुआ था । आपके दो पुत्रियाँ हुई। दो देवर भी हैं। आपके पति की मृत्यु हो जाने से आपको यह संसार नश्वर जान पड़ा । आपने सन् १९६५ में गिरनारजी पर सीमंधर स्वामी से क्षुल्लिका दीक्षा ले ली । आपने गिरनार, अहमदाबाद, हुमच, कुन्थलगिरि गजपंथा श्रादि स्थानों पर चातुर्मास किये ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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