SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३६ ] दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री सीमन्धरसागरजी महाराज द्वारा दीक्षित शिष्य X मुनि श्री सिद्धसागरजी क्षुल्लक श्री सुमतिसागरजी आर्यिका राजुल मतीजी 999999 मुनि श्री सिद्धसागरजी महाराज आपका गृहस्थ अवस्था का नाम मोतीलाल था आपका जन्म कसवां ( कोटा ) राजस्थान में हुआ | आपके पिता श्री छीतरमलजी अग्रवाल समाज के भूषरण हैं और सिंघल गोत्रज हैं । श्रापकी माता गुलाबबाई है | आपके यहां श्रावण शुक्ला अष्टमी संवत् १६७६ में मोतीलाल ने जन्म लिया । आपने बचपन से ही शारीरिक और मानसिक विकास पर दृष्टि रखी । आप स्वभाव से दयालू और धार्मिक हैं । जीवविज्ञान का अध्ययन आपने महज इसलिये छोड़ दिया कि उसमें मेंढ़क की चीरफाड़ करनी पड़ती थी । आपने मोटर मैकेनिक का व्यवसाय आरम्भ किया । युवावस्था में भी आप विषयवासनाओं से विरक्त रहे । बीस वर्ष की अवस्था में ब्र० कन्हैयालालजी एक लड़की वाले को लेकर श्राये तब आपने कहा मैं तो विवाह नहीं करूंगा पर आपकी पुत्री का विवाह करा दूंगा और रामचन्द्रजी के पुत्र घीसालालजी से विवाह करा दिया । आपने तीर्थों की यात्रा की, जिनेन्द्र पूजन शास्त्र स्वाध्याय आहार दान का लाभ लिया । अशोक नगर में मुनि श्री विमलसागरजी भिंड के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर श्रापने ७ वीं प्रतिमा ग्रहण की । १० वर्ष ब्रह्मचारी रहे । अनन्तर सन् १९७२ में तीर्थराज सम्मेदशिखरजी पर मुनि श्री १०८ सीमन्धसागरजी के समीप चन्द्रप्रभु चैत्यालय में मुनि दीक्षा स्वीकार कर ली । आपने मुनि होकर प्रथम चातुर्मास रांची किया और द्वितीय चातुर्मास टिकैतनगर में किया । आपके चातुर्मासों में बड़ी धमं प्रभावना हुई ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy