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________________ ४८२ ] दिगम्बर जैन साधु महाराज ने मुनिदीक्षा दे दी, फिर आपका दीक्षित नाम श्री १०८ मुनि सुमतिसागरजी महाराज रखा गया। धन्य है आपकी धर्मपौरुषता को कि चन्द दिनों में ही आप सर्व परिग्रह त्याग कर भरा पूरा परिवार छोड़कर निम्रन्थ मुनिपद प्राप्त कर लिया। मुनि १०८ श्री अजितसागरजी महाराज सं० १९५८ में ग्राम कूप जिला भिण्ड में श्री गणेशीलालजी के घर पर श्री चुन्नीलालजी ने जन्म लिया था । आपने मिडिल शिक्षा प्राप्त करके गृहस्थ धर्म में प्रवेश किया तथा मुनि विमलसागरजी से सं० २०१२ में अलवर में क्षुल्लक दीक्षा धारण की तथा सं० २०१७ में भिण्ड में मुनि दीक्षा धारण की । गुरु ने आपका नाम मुनि अजितसागर रखा। आपने जैनागम के ग्रन्थों का स्वाध्याय किया तथा आत्म कल्याण में लगे हुए हैं। ऐलक श्री ज्ञानसागरजी महाराज आपका पूर्व नाम सुगनचन्दजी था। आपका जन्म वि० स० १९५६ पोष माह में घमसा जि. ग्वालियर में हुवा था । आपके पिता का नाम श्री प्यारेलालजी था । साधारण शिक्षा के बाद व्यापार में लग गये । सं० २०११ में विमलसागरजी से सातवी प्रतिमा ली। सं० २०१३ में क्षुल्लक दीक्षा एवं सं० २०१६ में ऐलक दीक्षा ली तथा भारत में गुरुवर्य के साथ विहार किया। ऐलक श्री सन्मतिसागरजी महाराज कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई देते हैं। लोकोक्ति कैसी भी हो परन्तु गांव गढ़ी ( भिण्ड ) के शिखरचन्द जैन के जीवन में यह कहावत यथार्थ निकली। गढी ग्राम में जैनियों के घर सिर्फ इने-गिने ही हैं । श्री पातीराम जैन खरोबा ( गोत्र पांडे ) अपनी पत्नी मथुराबाई के साथ अपने सीमित साधनों से निर्वाह करते हुए धर्म साधना करते थे। पुण्ययोग से सं० १९६२ में मंगसिर कृष्णा १२ को इस दम्पत्ति को पुत्ररत्न का लाभ हुआ। जिसका नाम शिखरचन्द रखा
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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