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________________ २] प्राचीन आचार्य परम्परा काल द्रव्य :-प्रत्येक द्रव्य में परिणमन के लिये निमित्त भूत वर्तना लक्षण काल द्रव्य है। समय, आवली, घड़ी, घंटा आदि व्यवहार काल की पर्यायें हैं । उस व्यवहार कालके दो भेद हैंअवसर्पिणी, उत्सर्पिणी । इन दोनों कालों के छह-छह भेद हैं । अवसर्पिणी के-सुपमा सुपमा, सुषमा, सुपमा दुःपमा, दुःषमा सुषमा, दुःपमा और दुःषमा दुःषमा । उपिणी के दुपमा दुःपमा, दुःपमा, दुःपमा सुपमा, सुषमा दुःपमा, सुषमा और सुपमा सुषमा । प्रथम सुषमा सुषमा काल :-चार कोड़ा कोड़ी सागर का, द्वितीय काल तीन कोड़ा कोड़ी सागर का, तृतीय काल दो कोड़ा कोड़ी सागर का, चतुर्थ काल व्यालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ा कोड़ी सागर का, पंचम इक्कीस हजार वर्ष का और छठा इक्कीस हजार वर्ष:का है। ऐसे अवसपिणी के दस कोड़ा कोड़ी एवं उत्सर्पिणी के दस कोड़ा कोड़ी मिलाकर वीस कोड़ा कोड़ी सागर का एक कल्प काल होता है। ये दोनों ही काल चक्रवत् चलते रहते हैं । यह काल परिवर्तन भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्य खण्ड में ही होता है, अन्यत्र नहीं। . भोगभूमि :-जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के मध्य में आर्य खंड है । उसमें जव अवसर्पिणी का प्रथम काल चल रहा था तव यहाँ देवकुरु सदृश उत्तम भोगभूमि को व्यवस्था थी। मनुष्यों की आयु तीन पल्य, शरीर की ऊंचाई तीन कोस, वर्ण स्वर्ण सदृश था । वे भोगभूमिया मल, मूत्र, पसीने से रहित तीन दिन के बाद कल्पवृक्षों से वदरी फल वरावर भोजन ग्रहण करते थे। वहाँ दस प्रकार के कल्पवृक्ष थे-मद्यांग, तूर्याग, भूपणांग, माल्यांग, ज्योतिरंग, दीपांग, गृहांग, भोजनांग पात्रांग और वस्त्रांग । ये अपने नाम के अनुसार इच्छित फल देने वाले थे। ये युगल ही जन्म लेते और युगल ही मरते हैं। आयु के अन्त में पुरुष को जंभाई, स्त्री को छींक आने से मरकर देवगति में चले जाते हैं। क्रम से मनुष्यों का वल आयु घटते-घटते द्वितीय 'सुपमा' काल आता है इसमें मध्यम भोगभूमि की व्यवस्था रहती है । आयु दो पल्य, ऊँचाई दो कोस और वर्ण चन्द्र सदृश होता है । दो दिन बाद वहेड़े वरावर भोजन ग्रहण करते हैं। क्रम से आयु वल के घटते-घटते तृतीय काल में जघन्य भोगभूमि रहती है। आयु एक पल्य, ऊंचाई एक कोस और शरीर वर्ण हरित होता है । ये एक दिन के अन्तर से आंवले बराबर भोजन लेते हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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