SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर जैन साधु [ ४३३ श्री वर्द्धमानसागरजी महाराज बुन्देलखण्ड के ठकुरासों की राजसी ठाट की कहानियां इतिहास के पन्नों में सिमट कर अब स्मृति के दायरे टटोल रही हैं । लगता है औकात की बात पूछना मानों आज भी उसकी ज्ञान के खिलाफ हो। हो भी क्यों न, शान ही तो उनकी आन है। हर चौखट से उठती हुई जोश की एक लहर हर पल देखी जा सकती है । पहले यह जोश वैभव के लिये होता था और आज यह वैभव त्याग के लिये है । कथ्य वही 3 है पर तथ्य बदल चुका है । सिमरिया ( ललितपुर) के श्री खुशालचन्द मोदी अपनी पत्नी सहोद्रावाई के साथ इसी बुन्देलखण्ड की भूमि में साधारण व्यवसाय करते हुए श्रावक के व्रत पाल रहे थे । सं० १९८६ भाद्र शु० ३ को इनके घर एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ जिसका नाम बच्चूलाल रखा गया। साधारण परिवार में जन्मे हुए बच्चूलाल में बचपन से ही धर्म प्रचार-प्रसार के प्रति अत्यन्त जोश था और उसका यह जोश सं० २०३२ पौष शु० १४ को आहार सिद्ध क्षेत्र पर पू० मुनि श्री नेमसागरजी म० का सान्निध्य पाकर चरम सीमा पर जा पहुंचा । गुरुदर्शन मात्र से जिसके अंतरंग चक्षु खुल जांय भला उसकी पात्रता में भी किसी को संदेह हो सकता है । आचार्य श्री ने भव्यात्मा को संबोधित करते हुए क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर दी तथा आपका नाम वर्द्धमान सागर लोक में प्रसिद्ध किया । गुण आदेशानुसार आप भी रत्नत्रय चारित्र को निरन्तर वृद्धिंगत करते हुए जिनमार्ग की प्रभावना में लीन हैं । वरौदियाकलां में चातुर्मास करके वहां पाठशाला की स्थापना कराके बालकों को धर्म शिक्षा के प्रति उन्मुख किया जो कल के लिये भित्ति का कार्य कर रही है। क्षुल्लक श्री शान्तिसागरजी श्री १०८ क्षुल्लक शान्तिसागरजी का पहले का नाम भरम नरसिप्पा चौगले था। आज से लगभग ७५ वर्ष पूर्व प्रापका जन्म गल्तगा (बेलगांव ) में हुआ। आपके पिता श्री नरसिप्पा चौगले थे, जो कृषि फार्म पर कार्य करते थे। आपकी माता श्रीमती गंगाबाई थी। आप चतर्थ जाति के भूषण हैं, आपका गोत्र खेत्री है । आपने धार्मिक अध्ययन स्वयं ही किया। आपके परिवार में एक भाई और तीन बहन हैं । आपका विवाह हुआ । आपके तीन पुत्र और दो पुत्रियां हुई।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy