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________________ ४३४ ] दिगम्बर जैन साधु गृहस्थ अवस्था में ही आप शास्त्र श्रवण करते थे। दशलक्षण धर्म का मनन करते थे। सोलह कारण भावनाओं पर चिन्तन करते थे। इसलिये आपमें वैराग्य के संस्कार बढ़े। आपने दिनांक २५-२-१९६६ को बारेगांव (वेलगांव ) में श्री १०८ आचार्य नेमिसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा लेली। आपको दशभक्ति पाठ कण्ठस्थ हैं । आपने हुपरी, डगार, शेडवाल, टिकैतनगर आदि स्थानों पर चातुर्मास किये आपने जीवन पर्यन्त के लिये मिष्ठान्न और हरे शाक का त्याग कर दिया है। आप संयम और विवेक की दिशा में और भी आगे बढ़ें और देश तथा समाज को बढ़ावें। क्षुल्लक श्री गुणभद्रजी आपका गृहस्थ अवस्था का नाम सुखलाल था । आपके पिताश्री प्यारेलालजी थे और माता का नाम भगवन्तीवाई था । आपका जन्म खिस्टोन जिला टीकमगढ़ में हुआ था। आपके घर पर साहुकारी व खेतीबाड़ी का धन्धा होता था । जब आप १३ वर्ष के थे तब आपको मां का स्वर्गवास हो गया था। आप पिता की देखरेख में बढ़ने व पढ़ने लगे। खिस्टोन में ही आपने कक्षा ४ तक प्राथमिक शिक्षा पाई। इसके बाद पांच वर्ष तक कुण्डपुर में रहकर धार्मिक शिक्षा प्राप्त की । आपने ७० गजाधरप्रसादजी, व० अमरचन्द्र, व्र० गोकुलप्रसाद को गुरु रूप में स्मरण किया । आपने ईसरी में पं० शोभनलालजी से द्रव्यसंग्रह पढ़ी। द्रोणगिरि में क्षुल्लक १०५ श्री चिदानन्दजी महाराज से तत्वार्थ सूत्र पढ़ा। जब आप २२ वर्ष के थे तव आपका गौरारानी से विवाह हुआ। आपके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं । आपको नाटकों से बड़ा लगाव था, पृथ्वीपुर, बछोड़ा नाटक मंडलियों में रहे । कविता करने का भी चाव था प्रतिक्रमण कविता मेरठ से प्रकाशित भजनमाला में संग्रहीत है। सत्संगति धर्मश्रवण से विरक्ति बढ़ी तो आपने क्षुल्लक आदिसागरजी से दूसरी प्रतिमा ली और गणेशप्रसादजी वर्णी से चौथी प्रतिमा ली । ब्रह्मचारी गोकुलप्रसाद को दिये गये वचन के अनुसार आपने ५० वर्ष की अवस्था में ब्रह्मचर्य प्रतिमा ले ली । आपके गुरु अनन्तकीतिजी महाराज थे। ८० वर्ष की अवस्था में पवाजी के वार्षिक मेले में आपने मुनिश्री नेमीसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ली।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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