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________________ ३९६ ] दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक शान्तिसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक शान्तिसागरजी का गृहस्थ अवस्था का नाम छोटेलालजी था । श्रापका जन्म आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले लुहारिया ( बांसवाड़ा, गढ़ी तहसील ) में हुआ | आपके पिता श्री किशनलालजी हैं, जो किराने के व्यापारी हैं । आपकी माता गुलाबबाई है । आप नरसिंहपुरा जाति के भूषण हैं । आपकी लौकिक शिक्षा हाई स्कूल तक हुई । आप आरम्भ से ही विषय वासनाओं से विरक्त रहे । धार्मिक वातावरण में पले । अतएव बाल ब्रह्मचारी रहे । आपके परिवार में तीन भाई और एक बहिन हैं । आपने श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी की विमलवाणी से प्रभावित होकर विक्रम संवत २०२५ अजमेर में क्षुल्लक दीक्षा ले ली । आपने भक्तामर छहढाला आदि का अध्ययन किया । आपने सुजानगढ़ में चातुर्मास किया । क्षुल्लक नेमिसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक ने मिसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम आलमचन्द्रजी था । आपका जन्म आज से लगभग अस्सी वर्ष पूर्व बहटा ( शिवपुरी) म० प्र० में हुआ | आपके पिता श्री अमरचन्द्रजी थे, जिनकी परचूनी की दुकान थी । आपकी माता क्षेमश्री थी । आप अग्रवाल जाति के भूषण हैं । आप मित्तल गोत्रज हैं । आपकी लौकिक शिक्षा कक्षा ५ वीं तक हुई । विवाह भी हुआ । एक पुत्र व दो पुत्रियां हुई। सत्संगति और धर्मोपदेश श्रवण से आपको संसार से विरक्ति होने लगी । आपने विक्रम संवत २०१६ में अकाझिरी में श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ले ली । आपको बारह . भावना एवं अनेक सुभाषित श्लोक पढ़ने का बड़ा शौक है । आपने दस स्थानों पर चातुर्मास किये । आप हमेशा पर्व के दिनों में अगृमी- चतुर्दशी को उपवास करते हैं । आप अपनी भांति अन्य लोगों को भी संयम और विवेक के मार्ग पर लाने में समर्थ हों यही कामना है । Xx
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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