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________________ दिगम्बर जैन साधु [ ३९५ क्षुल्लक वृषभसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक वृषभसागरजी का गृहस्थ अवस्था का नाम अ० रतनलालजी था । प्रापका जन्म मंगसिर सुदी तीज संवत १९५२ को दूदू ( जयपुर ) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री सुरजमलजी है । आपकी माता का नाम जड़ाववाईजी है । आप खण्डेलवाल जाति के भूपण हैं। आप लुहाड़िया गोत्रज हैं। आपको धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा साधारण हो रही । आप बालब्रह्मचारी रहे। ___ आचार्य विमलसागरजी की संगति से आपमें वैराग्य भावना बढ़ी । आपने फाल्गुन वदी चौथ वि० सं० २०२५ में पदमपुरा पंचकल्याणक में आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी से क्षुल्लक दीक्षाने ली। आपने रेनवाल-मांजी, जयपुर में चातुर्मास कर धर्म प्रभावना की। प्रापने दो रसों का त्याग किया है। क्षुल्लक सुमतिसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक सुमतिसागरजी का पहले का नाम गिरवरसिंह है । आपका जन्म आगे लगभग ४० वर्ष पूर्व पिड़ावा ( झालरापाटन ) राजस्थान में हुा । श्रापके पिता श्री भंवरलालजी हैं जो कृषि और दुकानदारी में निपुण हैं । आपकी माता तारावाई हैं । आप जैसवाल जाति के भूपण हैं । आपकी लौकिक शिक्षा साधारण हो रही । आप वाल ब्रह्मचारी हैं । आपके तीन भाई व तीन वहिनें हैं । आपने धार्मिक उपदेशों का श्रवण किया, सत्संगति में जीवन व्यतीत किया, अतएव गोध्र ही वैराग्य के संस्कार पनपे । आपने कम्पिला क्षेत्र में श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी मे सातों प्रतिमा ले ली । आपने मुक्तागिरि तीर्थक्षेत्र पर विक्रम संवत् २०२१ में श्री १०८ प्राचार्य विमलसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा लेली। आपने कोल्हापुर, सोलापुर, ईडर, मुजानगढ़ आदि जगहों पर चातुर्मास किये । आपने नमक, तेल, दही आदि रसों का त्याग किया है । आप बड़े ही मिलनगार य मृदुभापी हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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