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________________ ३६४ ] दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक प्रबोधसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक प्रबोधसागरजी के गृहस्थावस्था का नाम पंडित पन्नालालजी था । आपका जन्म कार्तिक शुक्ला छठ विक्रम संवत् १९७३ को जारी ( भिण्ड ग्वालियर ) म०प्र० में हुआ था। आपके पिता श्री सुरजमलजी व माता श्रीमति सुरजदेवी थी। आप गोलसिंघारे जाति के भूषण हैं व सिंघई गोत्रज हैं । धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा साधारण हुई । विवाह भी हुआ। परिवार में दो भाई दो बहिन, दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। स्वयं का अनुभव व प्राचार्य श्री १०८ विमलसागरजी महाराज की सत्संगति के कारण आपमें वैराग्य प्रवृत्ति जाग उठी। विक्रम संवत २०२४ में ईडर ( गुजरात ) में आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ले ली । आपको पाठ कंठस्थ याद हैं। आपने सुजानगढ़ आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्म वृद्धि की। क्षल्लक विजयसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक विजयसागरजी का बचपन का नाम नेमीचन्द्रजी था। आपका जन्म आज' से ७० वर्ष पूर्व पुन्हेरा ( एटा ) में हुआ। आपके पिता का नाम हीरालालजी था जो एक सफल व्यापारी थे। आपकी माता मणिकबाई थी । आप पदमावती पुरवाल जाति के भूषण हैं। आपकी लौकिक शिक्षा कक्षा ५ वीं तक हुई । आप बालब्रह्मचारी रहे । आपके चार भाई और चार वहिनें हैं। संतों की संगति से आपमें वैराग्य भावना बढ़ी व आपने वि० सं० २०२० में क्षुल्लक विजयसागरजी से दूसरी प्रतिमा धारण करली । बाद में विक्रम संवत २०२१ में कोल्हापुर स्थान पर आचार्य श्री विमलसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ले ली । आपने सोलापुर, ईडर, सुजानगढ़ इत्यादि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्म वृद्धि की । आपने घो, तेल, दही, नमक आदि का त्याग किया है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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