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________________ ...... दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक श्री नंगसागरजी आपके पिता का नाम श्री भूपाल उपाध्यायजी एवं माता का नाम श्री चम्पाबाई है । श्रापका जन्म जैन वाड़ी महाराष्ट्र प्रान्त में हुआ । आपके बचपन का नाम चन्द्रकांत उपाध्याय है । आपकी तीन बहिनें हैं । आप अपने पिता के इकलोते पुत्र हैं । आपने ब्रह्मचर्य व्रत श्री १०५ भट्टारक श्री लक्ष्मीसेनजी से लिया । सात प्रतिमा के व्रत श्री १०८ बालाचार्य मुनि बाहुबलोजी से लिये । आपका लौकिक अध्ययन कक्षा तक का है। आपने क्षुल्लक दीक्षा पौष सुदी १ गुरुवार दिनांक २०-१२-१६८० को सोनागिरी सिद्धक्षेत्र पर सन्मार्ग दिवाकर श्री १०८ आचार्य श्री विमलसागरजी से ली । jaye sege ww * क्ष 0 श्री उदयसागरजी [ ३८९ आपका पूर्व नाम श्री चन्दनमलजी पांड्या था आप कुचामन (राज.) के हैं, आपका जन्म पूज्य छगनलालजी के यहां संवत १९५८ ई० १९०१ में कुचामन सिटी में हुआ || ६ भाई थे जिनमें तीसरे भाई श्री चन्दनमलजी थे आप ३० ग्रामों के जागीरदार राजपूतों के बारे में लेनदेन करते थे तथा करीव १ लाख बीघा जमीन पर बतोरे स्वामी थे । तथा बड़े-बड़े व्यापार भी किया करते थे आपके ३ पुत्र, ३ पुत्रियां हैं जिनको पढ़ा लिखाकर व्यापार में लगाकर विवाह शादी कर दी । पुत्र पौत्रियां संपत्ति भाईयों व उनकी संतानें आदि १०५ परिवार जनों का मोह त्याग कर आपने १०८ श्री चंद्रसागरजी व वीरसागरजी से २० वरसों से प्रतिमा धारण कर अंत में श्री १०८ श्री आचार्य विमलसागरजी से सुजानगढ़ में पत्नी सहित सं० २०२५ में क्षुल्लक, क्षुल्लिका दिक्षा ली । *
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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