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________________ ३६० ] दिगम्बर जैन साधु movie14. WEDNPStrange ANTI Oleased Xndi SNER क्ष० श्री ज्ञानसागरजी म., दीक्षा के पश्चात्-क्षुल्लक ज्ञानसागरजी - दीक्षा से पहले -सूरजमल १. श्रीजी की दीक्षा का कारण-सत्संग २. कहां और कब-संवत् २०२१ कोल्हापुर में श्री आचार्य स श्री विमलसागरजी के द्वारा आसोज सुदी १० ३. योग्यता-गुजराती व हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान है । __कई शास्त्रों का अध्ययन किया है तथा प्रचार किया है। । ४. रुचि-१. शास्त्र स्वाध्याय २. धर्म ध्यान ३. लेखों कविताओं का संग्रह कर पुस्तकों का प्रकाशन कराना। ४. पंच कल्याणक प्रतिष्ठा कराना। ५. मंदिरों का निर्माण करवाना। ६ जगह-जगह जन पाठशालाएं चालू करवाना । ७. चैत्यालयों का निर्माण कराना। विशेष :-चार रसों का त्याग । चतुर्मास के स्थान :-कोल्हापुर, फलटन, हुपरी, इन्दौर, घाटोल (बांसवाड़ा), लुहारिया ( बांसवाड़ा ), रामगढ़ (डूंगरपुर ), सागवाड़ा (डूंगरपुर ), गलियाकोट (डूंगरपुर ), सोजित्रा ( गुजरात ), मांडवी (सूरत), गलियाकोट (डूंगरपुर)। वि० वि०:-आपने जहां जहां विहार किया, वहां जैन पाठशालाए आरंभ कराई तथा लेख कविता, पूजा का संग्रह कर पुस्तकों का प्रकाशन कराया। १. जिनेन्द्र भक्ति, २. श्री श्रुत स्कंध विधान श्री सम्मेदशिखर पूजा सहित ३ श्री श्रुत स्कंध विधान सामायिक पाठ सहित । ___ महाराज श्री ने दाहोद में दो मन्दिरों का निर्माण कराकर पंच कल्याणक उत्सव कराया तथा एक चैत्यालय का निर्माण स्वयं के घर पर कराया । भिन्न-भिन्न स्थानों पर २ चैत्यालयों का निर्माण भी कराया है। तथा जहां आप पधारे हैं और जहां जैन पाठशालाए नहीं थी, जैन पाठशालाएँ प्रारम्भ कराई हैं ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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