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________________ ३६४ ] दिगम्बर जैन साधु अवस्था के तीन पुत्र और पुत्री हैं । आपका जीवन बड़ा ही सुचारु रूप से चलता था परन्तु मन वैराग्य की ओर बढ़ने लगा और अपने जीवन को संसार विच्छेद व स्त्री लिंग छेदन के उपाय में लगाया । अतः अब आप अपने चारित्र को दृढ़ता से पालन करते हुये जोवन व्यतीत कर रहे हैं । आपने दीक्षा लेकर शिखरजी खंडगिरि उदयगिरि आदि की यात्रा भी करी आप अपने जीवन में प्रति धर्म कार्य को ही करते रहे और अपने पति को भी आप प्रेरणा देती रहीं कि संसार असार है। आपकी प्रेरणा सफल हुई जो आप तथा आपके पतिदेव दोनों ने दीक्षा लेकर अपना आत्म कल्याण का मार्ग अपनाया इसी मार्ग का अच्छी तरह पालन करते रहें यही हमारी हार्दिक भावना है । क्षुल्लिका आदिमतीजी श्री १०५ क्षुल्लिका आदिमती का गृहस्थावस्था का नाम शशिकुमारी था। प्रापका जन्म राजमन्नारगुड़ी (मद्रास ) में हुआ। आपके पिता श्री का नाम वर्धमान है । माता पूर्णमतीजी हैं । आपकी लौकिक शिक्षा नाममात्र की कक्षा दूसरी तक हुई पर स्वभाव में चन्द्रमा सी शीतलता होने से आप दोनों कुलों में सम्मान्य हुई । आपके पति अपाङमुदलिया वैदारवीया निवासी थे। जब वे ही नहीं रहे तब आपको घर भार लगने लगा। आपने भाईयों से अनुमति ली और नागौर में श्री १०८ आचार्य महावीरकीर्तिजी महाराज से सन् १९५८ में दीक्षा ले ली। आपने नागौर, अजमेर, कल्लोल, पावागढ़, मांगीतुगी, गजपन्था, कुन्थलगिरि आदि स्थानों पर चातुर्मास किये । धर्म प्राण जनता को अच्छी बातें सिखायी। क्षुल्लिका जिनमतीजी आपके पिता श्री चन्द्रदुलजी एवं माता श्री दुरीबाई की पुत्री हैं। आपका गृहस्थावस्था का नाम मकुबाई था। जन्म सं० १९७३ स्थान पाड़वा सागवाड़ा ( राजस्थान ) जाति नरसिंहपुरा है। पहली प्रतिमा आचार्य १०८ महावीरकीर्तिजी, सातवीं प्रतिमा मुनि वर्द्धमान सागरजो से ली थी। क्षुल्लिका दीक्षा २०२४ फागुन सुदी १२, स्थान पारसोला में ली थी । विवाह के छः महीने बाद वैधव्य हो गया । आपके दो भाई हैं । आप भी विदुषी तपस्विनी क्षुल्लिका हैं । आप स्वभाव से शान्त प्रकृति की हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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