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________________ दिगम्बर जैन साधु [ ३६५ क्षुल्लिका नेमिमतीजी आपका जन्म फलटन (महाराष्ट्र) में वीसा हूमड़ गोत्रीय श्री वंडोवा की धर्मपत्नी श्रीमती सोनाबाई की कोख से हुआ। बचपन में आपका नाम सोनावाई था। आपका विवाह सूरत निवासी जरीवाला श्री गुलावचन्दजी साकर चंदनास वालों के साथ सम्पन्न हुआ। आपकी शिक्षा मराठी भाषा में हुई । वैवाहिक जीवन में आदि पुराण का स्वाध्याय करते हुये आपको वैराग्य भाव उत्पन्न हो गये । परिणाम स्वरूप प्रतापगढ़ में आपने स्वर्गीय आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज सा० से ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण करली । पश्चात् सं० २०१३ में नागौर में प्राचार्य श्री महावीरकोतिजी महाराज से आपने क्षुल्लिका दीक्षा धारण की । तत्पश्चात् उदयपुर, तलोद, पावागढ़, ऊन, धरियावद आदि स्थानों पर चातुर्मास करते हुये आपने खूब धर्म प्रभावना की। क्षल्लिका चन्द्रमतीजी अलवर राजस्थान में श्री केशरवाई का जन्म हुवा । आपके पिता श्री सरदारसिंहजी थे तथा माताजी का नाम भूरीवाई था । बचपन से धर्म में प्रवृत्ति थी । सदा पूजा पाठ सामायिक आदि किया करते थे। प्राचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज के प्रभाव से आपने अपने जीवन को पवित्र बनाया तथा प्राचार्य श्री से व्रत धारण किए । आप गृहस्थ में रहकर श्राविकाओं को धर्मोपदेश दिया करती थीं। वैराग्य भाव तीव्र हुए तथा सोनागिरजी की वंदना को गये वहां प्राचार्य महावीरकीतिजी महाराज से प्रापने क्षुल्लिका दीक्षा ली तथा आपने अपने जीवन में स्त्रियों को शिक्षा देकर उन्हें शिक्षित किया । आप वाल विधवा हैं आपका विवाह ८ वर्ष की उम्र में हो गया था। हाथ की मेंहदी भी नहीं उतर पाई थी कि वैधव्यता का पहाड़ सिर पर आ पड़ा उसी समय से आपने अपना जीवन संयम में व्यतीत किया।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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