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________________ [ ३१ ] चारित्र चक्रवर्ती तपोनिधि परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज ने जिस ज्ञान और चारित्र की उज्ज्वलता को अपनी तपः साधना के द्वारा दर्शाया था उसीको तद्रूप बनाये रखने वाले इस परम्परा के तृतीय आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज हैं । संयमी जीवन की निर्मल साधना, विनय-विवेक का जागरण, सहनशीलता, गम्भीरता आदि विविध विशेषताओं की अभिव्यक्ति के साथ आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज दिगम्बर जैन समाज को असाधारण नेतृत्व प्रदायक एवं उनके प्रगतिगामी कर्तव्य के परिचायक हैं। दिगम्बर साधु परिचय ग्रन्थ की रूप रेखा पूर्व में कई बार बनाई गई पर कार्य अपूर्ण रहा। भा० दि० जैन महासभा ने प्रथम बार आज से २५ वर्ष पूर्व योजना बनाई पर कार्य बीच में ही रुक गया, करुणा दीप के सम्पादक श्री जिनेन्द्रकुमारजी ने भी इस कार्य में रुचि ली परन्तु वह कार्य भी मन्द हो गया। भगवान महावीर स्वामी के ९५सौं वे निवार्ण वर्ष के समय प्राचार्य धर्मसागरजी महाराज ससंघ दिल्ली विराजमान थे उस पुण्य अवसर पर दिल्ली के समाज शिरोमणि मुनिभक्त सेठ श्री श्यामलालजी ठेकेदार ने भी प्रयास किया पर यह प्रयास भी बीच में रुक गया। तत् पश्चात् औरंगाबाद से साप्ताहिक पत्र के सम्पादकजी ने भी पूर्ण प्रयत्न किया किन्तु अर्थाभाव के कारण रुक गया । श्री त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर की ओर से भी प्रकाशित करने की योजना बनी पर कार्य अधूरा रहा । शां० वी० सिद्धांत संरक्षणी सभा की ओर से भी कार्य करने की योजना बनी पर अधूरी रही। श्री लाला श्यामलालजी ठेकेदार ने पुनः प्रयास किया, पं० सुमेरचन्दजी दिल्ली वालों ने भी इसको आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया पर वह बीच में ही रुक गया । ठेकेदारजी ने मुझे भी कई बार इस कार्य को पूर्ण करने के लिये कहा, उनके विशेष प्राग्रह से मुझे स्वीकृति देनी पड़ी। मैंने सारी सामग्री अवलोकन की तो उस समय कुल ८२ साधुओं के जीवन परिचय प्राप्त थे। मैंने परिचयों को देखने पर विचार किया तथा मेरी जानकारी के अनुसार ५०० से अधिक साधुवृन्द हो गये । मैंने भी यह महसूस किया कि आज भारत वर्ष में सैकड़ों साधु वृन्द यत्र तत्र विहार करके जैन धर्म की प्रभावना कर रहे हैं इनके जीवन परिचय छपें ताकि आगामी पीढ़ी को भी जानकारी हो सके कि हमारे देश में कौन-कौन आचार्य हुए तथा उनके द्वारा कितने शिष्य दीक्षित हुए तथा अाज के युग में कितने साधु वृन्द हैं । पूर्व तथा वर्तमान के ५०० से अधिक साधु वृन्द हो गये इनका जीवन परिचय लिखना कठिन था सारे देश में फैले हुए मुनिराजों और त्यागियों का परिचय पाना सरल कार्य नहीं था परन्तु विभिन्न स्थानों के मुनि संघ कमेटियों के मंत्रियों और समाज के मूर्धन्य कार्यकर्ताओं के सहयोग से यह कृति तैयार की जा सकी।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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