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________________ दिगम्बर जैन साधु प्रायिका गुरणमतीजी [ २५५ पू० गुणमतीमाताजी का जन्म श्री महावीरजी में हुवा था | आपके पिता का नाम मूलचन्दजी पांड्या था । का पूर्व नाम असर्फीबाई था । आपका विवाह भंवरलालजी गंगवाल नीमाज ( राजस्थान ) के यहां हुवा था । आपके जन्म के समय पिता को धन की ( असफियों ) की प्राप्ति हुई थी इसीलिए आपका प्यार का नाम यही रहा । बचपन से धर्म में रुचि थी। पूजन, भजन, कीर्तन में विशेष रुचि रखती थीं । संगीत में अच्छी आस्था रही । आपके २ पुत्र एवं १ पुत्री हैं जो सम्पन्न एवं धार्मिक वृत्ति के हैं । आचार्य वीरसागरजी से सातवीं प्रतिमा को धारण किया। महावीरजी में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के पुण्य अवसर पर आपने श्रायिका दीक्षा श्राचार्य धर्मसागरजी से ली । दीक्षा के बाद आपने समस्त तीर्थो की पैदल वंदना की । आप सरल एवं प्रखर प्रतिभा की धनी हैं । प्रवचन शैली भी मनोरम है श्रोताओं के ऊपर आपके प्रवचनों की अमिट छाप पड़ती है आपके अन्दर गुरु भक्ति अटूट भरी हुई है । श्रापके द्वारा धर्म की महती प्रभावना होती रहती है । आप चारित्र शुद्धि के १२३४ उपवास भी कर रही हैं जो पूर्ण होने को हैं । १
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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