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________________ " m २५६ ] दिगम्बर जैन साधु प्रायिका प्रवचनमती माताजी आपका जन्म कर्नाटक प्रान्त के जिला बेलगांव के अन्तर्गत ग्राम सदलगा में मातेश्वरी श्रीमती देवी की कोख . से सन् १९५५ में रक्षावन्धन के दिन हुआ था। आपका :: बचपन का नाम सुवर्णकुमारी था। क्योंकि आपके जन्म से १० दिन पहले ही आपके पिता ने २१ तोला सोना खरीदा इसलिए आपका नाम सुवर्णा रखा गया। आपके पिता का नाम श्री मल्लप्पाजी है, वर्तमान में श्री १०८ मल्लिसागरजी महाराज के नाम से मुनि पद में विभूषित हैं और माता . श्रीमती देवी वर्तमान में प्रायिका समयमती माताजी हैं। आपके चार भाई व एक बहिन है, एक भाई सिर्फ . .................. घर में रहा और सब दीक्षित हैं । आपकी शिक्षा मराठी व कन्नड़ में सातवीं कक्षा तक हुई है। आपका पूरा परिवार धर्मनिष्ठ है, बच्चों पर माता पिता का असर हुए बिना नहीं रहता । आप बचपन से ही पूजा पाठ भारती भजन आदि गुणों में प्रवीण थीं, आपके बड़े भाई श्री १०८ प्राचार्य विद्यासागरजी की दीक्षा व उनका प्रवचन सुनकर ही आपके मन में वैराग्य हुवा था । पर घर से कैसे निकलें इस विचार में थे। सन् १९७५ में आचार्य कल्प श्री सुबलसागरजी महाराज के संघ ने सदलगा ग्राम में चार्तुमास किया। रोजाना आहारादि देना, प्रवचन सुनना आदि करते थे। प्रा० विद्यासागरजी महाराज के दर्शन के लिए राजस्थान आये और ८ अप्रेल १९७५ में सवाईमाधोपुर में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया और कुछ दिनों के बाद श्री १०८ प्राचार्य धर्मसागरजी महाराज के पास पहुँचे तथा खतोली ग्राम में अक्षय तृतीया के दिन ७ वी प्रतिमा धारण कर ली इस प्रकार आपने माघ शुक्ला ५ वि० सं० २०३२ को मुजफ्फर नगर ( उ० प्र०) में परम पूज्य श्री १०८ आचार्य धर्मसागरजी से अपार जनसमूह के समक्ष आर्यिका दीक्षा ली, आपका नाम श्री प्रवचनमती रखा गया आप सतत् मनन चिन्तन अध्ययन करते रहते हैं, आपकी मुख मुद्रा प्रतिसमय प्रसन्न रहती है। -------
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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