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________________ २५४ ] दिगम्बर जैन साधु प्रायिका समयमतीजी. श्री १०५ प्रायिका समयमतीजी का जन्म सन् १९२१ में कर्नाटक प्रान्त के बेलगांव जिले के आकोला ग्राम में हुआ। प्रारम्भ से ही आप में धार्मिक प्रवृत्ति थी। जिनधर्म व पूजा आराधना में लीन रहती थीं । श्री मल्लप्पाजी [वर्तमान में मुनि श्री मल्लिसागरजी] की सह धर्मचारिणी रहो। आपका गृहस्थ नाम श्रीमति था। आपके चार पुत्रों एवं दो पुत्रियों में बड़े पुत्र को छोड़कर पांचों पुत्र-पुत्रियों ने दीक्षा ले ली है । प्रख्यात युवा । आचार्य विद्यासागरजी आपके ही पुत्ररत्न हैं । दोनों छोटे पुत्र भी मुनि हैं जो विद्यासागरजी महाराज के संघ में हैं । छोटी पुत्री स्वर्ण माला जो प्रवचन मति आर्यिका हैं । आपकी बहुत छोटी अवस्था है । आप सबने एक साथ सपरिवार विक्रम संवत् २०३२ माघ शुक्ला पंचमी को मुजफ्फर नगर ( उत्तरप्रदेश ) में आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज से अपार जन समूह के मध्य दीक्षा ली । आप स्वाध्यायी सरल स्वभावी एवं शान्त प्रकृति की हैं। धन्य धन्य है समयमति । समय का मूल्य समझ लिया । सभी पुत्र पुत्री को लेकर। समय का · सदुपयोग किया ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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