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________________ दिगम्बर जैन साधु [२११ मुनिश्री निर्मलसागरजी . . .. Dram ....RamPonroti : F : श्री १०८ मुनि निर्मलसागरजी का गृहस्थ अवस्था का नाम मदनलालजी जैन था । आज से लगभग सत्तावन वर्ष पूर्व आपका जन्म टोंक ( राजस्थान ) में हुआ। आपके पिता श्री केशरलालजी थे, इनको मिठाई की दुकान थी। आपकी माता का नाम धापूबाई था आप अग्रवाल जाति के भूषण हैं । आप मित्तल गोत्रज हैं। आपकी लौकिक एवं धार्मिक शिक्षा साधारण ही हुई। आपके परिवार में दो भाई थे । आपका विवाह हुआ और एक पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई। ... ' ___ आपने सत्संगति और उपदेशश्रवण से मन में वैराग्य लेने की बात भी विचारी । विक्रम संवत् २०२३ में श्रावण शुक्ला सप्तमी को टोंक में श्री १०८ आचार्य श्री धर्मसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ले ली । वाद में विक्रम संवत् २०२४ में मंगसिर शुक्ला पंचमी को श्री १०८ आ० धर्मसागरजी से ही मुनि दीक्षा लेली। आपने बूदी, विजौलिया, पार्श्वनाथ आदि स्थानों पर चातुर्मास किये । आप अपने भव्य जीवन से लोगों को सही अर्थों में भव्य बनने की प्रेरणा देते हुए शतायु हों, यही भावना है। 28-
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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