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________________ १८० ] दिगम्बर जैन साधु करते हुवे इस पर्याय को छोड़कर स्वर्गवासी वन गये । वास्तव में आपने व आपके पूरे परिवार ने धर्म क्षेत्र में जो कार्य किया है अनुपम है साथ ही अनुकरणीय भी है। मनिश्री भव्यसागरजी मुनि श्री १०८ भव्यसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम लादूलालजी था । आपका जन्म जेठ सुदी तीज, विक्रम संवत् १९७६ नैनवा में हुआ था । आपके पिता श्री मिश्रीमलजी थे जो कपड़े का व्यापार व नौकरी किया करते थे । आपको माता श्री वरजावाई थी। आप खंडेलवाल जाति के भूषण हैं व वैद गोत्रज हैं । आपकी धार्मिक शिक्षा द्रव्य संग्रह व रत्नकरंडश्रावकाचार तक हुई। आपका विवाह भी हुआ । परिवार में आपके चार भाई व तीन बहिनें हैं। . स्वाध्याय एवं चन्द्रसागरजी की प्रेरणा से आपमें वैराग्य भावना जागृत हुई। जयपुर खानियांजी में आपने ऐलक दीक्षा ले ली । कार्तिक सुदी तेरस विक्रम संवत् २०१७ में आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी से सुजानगढ़ में मुनि दीक्षा ले ली। आपने अजमेर, सुजानगढ़, खानियां, सीकर, लाडनू, बूंदी आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्मवृद्धि की । आपने चारों रसों का त्याग तथा गेहूं, चना, बाजरा, मटर आदि का त्याग किया है। ब A HA-EKHA
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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