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________________ दिगम्बर जैन साधु [ १७६ स्वयम् की बनी हुई विल्डिंग को गिराकर उस स्थान पर श्री पार्श्वनाथ दि० जैन विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया जो करोड़ों की लागत से तैयार हुवा और वहां भी पंचकल्याणक हुवा इस प्रकार लाखों करोड़ों का दान देकर इस युग में महान कार्य किया है इसके अलावा भी परम पू० १०८ समाधि सम्राट प्राचार्य श्री महावीरकीतिजी महाराज के संघ में हमेशा जाते रहते और आहारदान आदि देकर समय समय पर पूरी व्यवस्था करते थे। सं० २०२४ के साल में परम पू० १०८ प्राचार्य श्री शिवसागरजी महाराज का चातुर्मास उदयपुर ( राज० ) था उस समय आप श्री सेठ मोतीलालजी जौहरी दर्शनार्थ पधारे आचार्य श्री की प्रेरणा मिली तत्काल वैराग्य उमड़ पाया और प्राचार्यश्री से दीक्षा के लिये निवेदन किया और अच्छा मुहूर्त देखकर बहुत बड़ी धर्म प्रभावना के साथ मिती भाद्रपद शुक्ला १५ के दिन क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर दी आपकी धर्मपत्नि का नाम हुलासी बाई था जिनका दीक्षा के चार वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो गया था आपके पीछे तीन पुत्र पाँच पुत्री थे। बड़े श्री राजमलजी जौहरी, श्री सन्मतिकुमार, श्री अशोककुमार । इसप्रकार करोड़ों की सम्पत्ति एवं पूरा हरा भरा सम्पन्न परिवार भारी वैभव को ठुकराकर साधु बन गये । चातुर्मास के बाद संघ का उदयपुर से विहार होकर करीव ६ महीने में सलूम्बर पहुंचा और वहां पर आपने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली और आप मुनि श्री १०८ सुबुद्धिसागरजी के नाम से प्रसिद्ध हुवे और चारित्र शुद्धि आदि और भी अनेक व्रतों को करते हुवे कठिन व्रत उपवास करते रहे हैं इस वक्त आपकी उम्र ८३ वर्ष के करीब है और कई वर्षों से आप परम पू० १०८ अभोक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनि अजितसागरजी के साथ रहकर निरन्तर ध्यान अध्ययन करते हैं गत वर्ष सं० २०३६ के सलूम्बर चार्तुमास में आहार में केवल ५ वस्तु रखकर बाकी सभी प्रकार की वस्तुओं का आजीवन त्याग कर दिया है १. गेहूं, २. चावल, ३. दूध, ४ मट्ठा, ५. केला इस वृद्ध अवस्था में इस प्रकार का त्याग करते हुवे चातुर्मास में अभी भी एकातर आहार में उठते हैं। इस प्रकार केवल समाधि का लक्ष बना हुवा है । आपके बड़े भाई श्रीमान सेठ सा० गेंदमलजी ने भी परम पू० १०८ आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज से नीरा (महाराष्ट्र) चातुमास के समय क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर ली उसके बाद कुछ समय गजपंथा क्षेत्र पर रहकर धर्म साधना करते थे और जव अंतिम समय निकट आया उनके बम्बई आने के भाव हुवे और अपने निजी बनाये हुवे श्री १००८ पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कालबादेवी रोड़ पर आप पधारे । एक दिन सुबह उनकी तवियत कुछ विशेप खराब हुई और उसी समय अकस्मात् जीवन में संचित किये हुए महान पुण्य के उदय से परम पू० १०८ प्राचार्य श्री सुमतिसागरजी का संघ सहित दर्शनार्थ वहीं आना हवा । उनसे उसी वक्त आपने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली और एक घन्टे बाद ही महामंत्र णमोकार मंत्र का जाप्य
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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