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________________ 172 ] दिगम्बर जैन साधु ___ इस अवस्था में आकर आपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की कठिन प्रतिज्ञा लेकर सांसारिक भोगविलासों को ठुकराते हुये कठोर व्रतों का अभ्यास कर शरीर को दुद्ध र तपस्या का अभ्यासी बनाया। इस पवित्र ब्रह्मचर्यावस्था में आकर आपने अपने अथक श्रम से जिस आगम का ज्ञान प्राप्त किया उससे आपकी समाज के वीच उचित प्रतिष्ठा हुई / सफलता पूर्वक अनेक पंच कल्याणक प्रतिष्ठाओं में व्रत विधान कराने के कारण "प्रतिष्ठाचार्य" आत्म-कल्याण की ओर प्रवृत्त अनेक श्रावक श्राविकाओं को आगम की उच्च शिक्षा देनेके कारण "महापण्डित"-तथा अपनी विद्वत्ता पूर्ण प्रवचन लेखन शैली के कारण "विद्यावारिधि" के पद से समाज ने आपकी साधना को अलंकृत किया। आपमें एक विशिष्ट गुण का प्राधान्य पाया जाता है, वह यह है कि जब भी आप तर्क संगत विद्वत्ता पूर्ण विशेष कल्याण कारक कोई भी कार्य करते तो उसका श्रेय अन्य किसी व्यक्ति विशेष को इंगित कर देते, तथा स्वयं नाम प्रतिष्ठा के निर्लोभी बने रहते / कार्य का सम्पादन स्वयं करते और उसकी प्रतिष्ठा, इज्जत के अधिकारी अन्य व्यक्ति होते-यह आपकी व्यामोह विहीनता, महानता, प्रवल सांसारिक वैराग्य और क्षणभंगुर शरीर के प्रति निर्ममत्व के साथ ही मानव समाज के कल्यारण की उत्कृष्ट भावना का प्रतीक था। यदि आपकी विशिष्ट कार्य सम्पन्नता से प्रभावित होकर किसी व्यक्ति विशेष ने आपके गुणों की गरिमा गाई तो आप उससे प्रसन्न होने के बजाय अप्रसन्न ही हुए / धन्य है आपकी इस महानता को / आपके द्वारा प्रशिक्षित अनेक श्रावक श्राविका अपना आत्म-कल्याण करते हुए क्षुल्लक, क्षुल्लिका व आर्यिकाओं के रूप में धर्म साधन कर आपकी गुण गरिमा का परिचय दे रहे हैं। इस प्रकार ज्ञान और चारित्र में श्रेष्ठता पाजाने पर आपके अन्तर में वैराग्य की प्रबल ज्योति का उदय हुआ तथा सीकर ( राजस्थान ) में अपार जन-समूह के वीच परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से समस्त अंतरंग और बहिरंग परिग्रह का त्याग करके कार्तिक मुदी चतुर्थी सम्वत् 2018 की शुभतिथि व शुभ नक्षत्रमें आपने दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण कर ली। आचार्य श्री ने आपका नाम संस्कार श्री अजितसागर नाम से किया। दीक्षित नाम पूर्व नाम की अपेक्षा यथार्थवादी होता है अर्थात्-"यथा नाम तथा गुण" की युक्ति को चरितार्थ करने वाला ऐसा अजितसागर नाम पूज्य आचार्यवर ने रखा। ___ नवीन वय, सुगठित सानुपातिक और वलिष्ठ शरीर, सौम्य शान्त मुद्रा, चेहरे पर ब्रह्मचर्य का तेज, ऐसी अवस्था में नग्न मुद्रा धारण कर अपनी विषय वासना को कठोर नियंत्रण में करते हुये समाज के वीच सफल नग्न परीक्षण देना कितना कठिन है ? यह एक ऐसी अवस्था होती है जहां पर
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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