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________________ दिगम्बर जैन साधु [ 173 शारीरिक मोह छोड़ते हुये लज्जा और इन्द्रियों पर महान विजय पानी होती है / इन्द्रिय-निग्रह का महान आदर्श उपस्थित करना होता है / इस प्रकार हम देखते हैं कि आप अपने तेजोवल से मुनि धर्म का कठोरता से पालन करते हुये अपनी दिनचर्या का अधिकांश समय जैनागम के अध्ययन अध्यापन में व्यतीत करते हैं। आपका संस्कृत ज्ञान परिपक्व एवं अनुपम है / आपने निरन्तर कठोर अध्ययन एवम् मनन से जिस ज्ञान का भण्डार अपनी आत्मा में समाहृत किया उससे अच्छे-अच्छे विद्वान दाँतों तले अंगुली दवाकर नत हो जाते हैं। आपने 5 हजार श्लोकों का संग्रह किया है जो शीघ्र ही समाज के सामने आ रहा है। ____ आपके अध्ययन की प्रक्रिया को मात्र इस उदाहरण से कह सकते हैं कि-जैसे एक विद्यार्थी परीक्षा की सफलता के लिए अति निकट परीक्षा अवधि में तन्मयता और श्रम के साथ अध्ययन करता है उससे कहीं बहुत तीव्र लगन के साथ महाराज श्री अपने आत्म-कल्यारण रूपी परीक्षा की सफलता के लिये अनवरत तैयारी करते रहते हैं। आपने अनेकों ग्रन्थों का प्रकाशन कराया है। जब हम आपके जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो यह पाते हैं कि आपने मात्र 17 वर्ष का समय घर में व्यतीत किया और फिर आचार्य श्री के संघ में मिलकर आत्म कल्याण की ओर मुड़ गये / अल्प वय में इतना त्याग, इतना वैराग्य और ऐसी कठोर ब्रह्मचर्य व्रत की साधना के साथ मुनि धर्म जैसी कठोर चर्या का पालन करना विरले पुरुषार्थी महापुरुषों के लिए ही संभव हो सकता है। आप विशाल संघ के साथ यत्र तत्र सर्वत्र विहार करते रहते हैं / अन्तमें ऐसे महान् साधक श्री गुरु के पावन युगल चरणों में उनकी इस उत्कृष्ट महानता के लिये बार बार नमन है / iranANI AS
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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