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________________ दिगम्बर जैन साधु १.२० ] 2 सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि एक अजैन व्यक्ति जो कि भाटियाजी के नाम से विख्यात है, ते श्रापके उपदेशों से प्रभावित होकर कई स्थानों पर अपने स्वोपार्जित द्रव्य से सिद्धचक विधान भी करवाये एवं जैन तीर्थों की वंदना भी की । आपने महाराज श्री के प्रादर्श त्यागमय जीवन से प्रभावित होकर धर्मध्यान दीपक नामक पुस्तक के एक संस्करण का प्रकाशन भी करवाया । मालवा प्रान्तीय तीर्थक्षेत्रों की वन्दना : . I बावनगजा सिद्धक्षेत्र की वंदना के पश्चात् आपने इन्दौर नगर की ओर विहार किया और वि० सं० २०२१ का वर्षायोग यहीं स्थापित किया । इस वर्षायोग में श्रापको सर्वप्रथम मुनिशिष्य की प्राप्ति हुई अर्थात् आपने सर्व प्रथम मुनिदीक्षा इसी चातुर्मास में प्रदान की । वर्षायोग के पश्चात् आपने राजस्थान प्रांत की ओर विहार किया तथा क्रमशः झालरापाटन (२०२२) टोंक (२०२३), बूंदी ( २०२४ ) और बिजौलिया ( झालरापाटन ) के आस पास के ग्रामों में विहार करते हुए बासी ग्राम आए। आपके सान्निध्य में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भी यहां सम्पन्न हुई थी । यहीं आपके चरण सान्निध्य में वीतराग प्रभु के प्रति मूल प्रेरणा स्रोत आपके गृहस्थावस्था की बहिन ब्र० दाखांबाई ने सल्लेखना पूर्वक अत्यन्त शांत परिणामों से इस नश्वर शरीर का परित्याग कर स्वर्गारोहण किया था । आप प्रारम्भ से ही अति सहनशील एवं शांत परिणामी थी । स्वयं आचार्य श्री उनके इन गुणों की प्रशंसा करते ही हैं किन्तु जिन्होंने भी दाखांबाई को देखा था वे सब उनके गुरणों की प्रशंसा करते हुये पाये गए । टोंक और बू ंदी चातुर्मासों में क्रमशः क्षुल्लक और मुनि दीक्षाएं हुई । बिजौलिया नगरों में - मुनिसंघ के नायक होने से आपको आचार्य पद प्रदान करने की भावना समाज ने व्यक्त की किन्तु सदैव आपने यही कहा कि धर्मप्रभावना की दृष्टि से हम पृथक् विहार कर रहे हैं, हमें आचार्य पद नहीं लेना है, हमारे संघ के आचार्य शिवसागरजी महाराज विद्यमान हैं तथा दूसरी बात यह भी है कि आचार्य पद जैसे गुरुतर भार को ग्रहण करके मैं अपने धर्मध्यान में बाधा भी नहीं डालना चाहता हूं । 1 एक और वज्रपात : वि० सं० २०२५ का बिजौलिया नगर में चातुर्मास सम्पन्न करके श्रापने श्री शान्तिवीर नगर में होने वाले पंचकल्याणक महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए महावीरजी की ओर विहार किया । इस महोत्सव में भाग लेने के लिए आचार्य श्री शिवसागरजी से मिले तो वह उभय संघ सम्मिलन का दृश्य अपूर्व था । वि० सं० २०१५ से पृथक् विहार के पश्चात् गुरु भाईयों का यह मिलन दूसरी बार था । इससे पूर्व भी आप राजस्थान प्रान्त के उनियारा ग्राम में मिल चुके थे । प्रतिष्ठा महोत्सव से पूर्व ही आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज को फाल्गुन कृष्णा ७ सं० २०२५ को अचानक ज्वर ने घेर लिया और दिन प्रतिदिन आपकी शारीरिक स्थिति गिरती ही चली गई । फाल्गुन कृष्णा १४ को कई
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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