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________________ दिगम्बर जैन साधु [११६. श्री वीरसागरजी महाराज को अपना आचार्य स्वीकार किया। अब वीरसागरजी महाराज के ऊपर दोहरा भार था । और उन्होंने गुरु द्वारा प्रदत्त आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होकर उसे सफलता पूर्वक . निभाया । प्राचार्य पद के पश्चात् भी २ वर्ष तक आपने खानियाँ जयपुर में ही चातुर्मास किये।. क्योंकि आप शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे और विहार करने की सक्षमता आप में नहीं थी। .. एक और झटका गुरु वियोग का : वि० सं० २०१४ का चातुर्मास जयपुर में ही. सानन्द सम्पन्न हो रहा था कि इसी बीच आश्विन कृष्णा १५ को आचार्य वीरसागरजी महाराज का सहसा ही सल्लेखना मरण हो गया। आपको अभी दीक्षा लिये ६ वर्ष ही हुए थे कि आपको गुरु वियोगज अनिष्ट प्रसंग प्राप्त हुआ। प्राचार्य श्री वीरसागरजी का स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् समस्त संघ ने उनके प्रधान शिष्य मुनिराज. श्री शिवसागरजी महाराज को संघ का आचार्य बनाया। गिरिनार सिद्धक्षेत्र की वंदना एवं संघ से पृथक् विहार : अब संघ के प्राचार्य श्री शिवसागरजी महाराज थे । प्राचार्य-संघ ने गिरिनार यात्रा के लिए मंगल विहार किया। चूकि अब से १३ वर्ष पूर्व क्षुल्लक दीक्षा होने के पश्चात् आ० क० श्री चन्द्रसागरजी महाराज के साथ आपने गिरनारजी सिद्धक्षेत्र की वंदना के लिए विहार किया था, किन्तु गुरुदेव का असमय में मध्य यात्रा में ही स्वर्गवास हो जाने से उस समय आप यात्रा नहीं कर . पाये थे अतः उसका मनोरथ अब पूर्ण होता देख आपको प्रसन्नता थी। आपने भी संघ के साथ विहार, करते हुए गिरनार सिद्धक्षेत्र की वंदना की और वहाँ से वापस लौटते समय: व्यावर नगर में संघ ने वर्षायोग का विचार किया। चूंकि वर्षायोग में अभी समय था अतः आपने संघस्थ एक और मुनिराज को साथ लेकर संघ से पृथक् विहार कर दिया और निकटस्थ आनन्दपुर कालू जाकर वर्षायोग. स्थापित किया था। ___ यहां से अगले दो चातुर्मास क्रमशः वीर (अजमेर.) और बूदी करने के पश्चात् बुन्देलखण्ड की यात्रा करने के लिए आपने दो मुनिराजों के साथ मंगल विहार किया। तीर्थक्षेत्रों की वंदना करते हए आपने उस प्रांत में ग्राम-ग्राम, नगर-नगर में अत्यन्त धर्म प्रभावना की । इतना ही नहीं वि० सं०. २०१६-२०१६ व २०२० के तीन वर्षायोग भी आपने इसी प्रांत के क्रमशः शाहगढ़, सागर और खुरई नगर में किये । इन तीनों वर्षायोगों में धर्म की महती प्रभावना हुई तथा आपके सरलता आदिः अनुपम गुणों के कारण सागर के कई विद्वान आपसे प्रभावित भी हुए तथा आपके चरण सान्निध्य में व्रती जीवन भी प्राप्त किया। इन तीनों चातुर्मासों में. दीक्षा समारोह :( खुरई.) के अतिरिक्त
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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