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________________ [ १२१ दिगम्बर जैन साधु लोगों ने दीक्षा ग्रहण करने हेतु आचार्य श्री के चरणों में प्रार्थना की थी। पंचकल्याणक के अन्तर्गत तपकल्याणक के दिन यह दीक्षासमारोह होने का निर्णय था । प्रतिष्ठा से पूर्व फाल्गुन कृष्णा अमावस्या को शिवसागरजी महाराज के स्वास्थ्य की स्थिति और भी गिरती रही । संघस्थ मुनिराज श्री श्रुतसागरजी एवं सुबुद्धिसागरजी महाराज ने प्राचार्य श्री शिवसागरजी से पूछा कि यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं हो पाया और पाण्डाल में नहीं जा सकेंगे तो फाल्गुन शुक्ला ८ को होने वाले तपकल्याणक के अन्तर्गत दीक्षा समारोह में दीक्षार्थियों को दीक्षा कौन प्रदान करेगा । उत्तर स्वरूप प्राचार्य श्री ने कहा कि अभी आठ दिन शेष हैं तब तक तो मैं स्वयं ही स्वस्थ हो जाऊँगा और यदि नहीं हो सका तो मुनि श्री धर्मसागरजी महाराज दीक्षाथियों को दीक्षा प्रदान करेंगे। धर्मसागरजी महाराज वहां उपस्थित मुनि समुदाय में ( आचार्य शिवसागरजी को छोड़कर ) सबसे तपोज्येष्ठ थे। अमावस्या को मध्याह्न ३ बजे आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज का सहसा स्वर्गवास हो गया। समस्त संघ में वातावरण शोकाकुल सा हो गया क्योंकि संघ ने कुशल अनुशास्ता आचार्य श्री को खों दिया था। स्वयं धर्मसागरजी महाराज ने भी निधि खो जाने जैसा अनुभव किया। आचार्यत्व प्राप्ति : चुकि आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज के स्वर्गवास से प्रतिष्ठा महोत्सव में उत्साह की कमी आ गई थी, दूसरा ज्वलंत प्रश्न यह था कि संघ के आचार्य कौन होंगे ? आठ दिनों के विशेष ऊहापोह के पश्चात् फाल्गुन शुक्ला ८ सं० २०२५ को प्रभातकाल में संघस्थ सभी साधुओं ने एक स्वर से यह निर्णय किया कि अब आचार्य श्री शिवसागरजी के पश्चात् संघ के प्राचार्य का भार मुनिराज श्री धर्मसागरजी महाराज को प्रदान किया जावे। निर्णयानुसार तपकल्याणक के अवसर पर फाल्गुन शुक्ला ८ के दिन ही आपको विशाल जनसमुदाय के समक्ष चतुर्विध संघ ने आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया । विधि का विधान ही कुछ ऐसा होता है कि जिस आचार्य पद को ग्रहण करने की आपने पूर्व में भी कई बार अनिच्छा प्रगट की थी वही आचार्य पद प्रापको स्वीकार करना पड़ा। आचार्य पद . प्राप्त होने के पश्चात् उसी दिन आपके कर कमलों से (६ मुनि, २ आर्यिका, २ क्षुल्लक और १ क्षल्लिका) ११ दीक्षाएं हुई । ये वे ही दीक्षार्थी थे जिन्होंने आचार्य श्री शिवसागरजी के समक्ष प्रार्थना की थी। __ आचार्य पद प्राप्ति के पश्चात् महावीरजी क्षेत्र से जयपुर की ओर विहार किया और गुरुदेव श्री वीरसागरजी महाराज के निषद्यास्थान की वंदना की। वि० सं० २०२६ का वर्षायोग आपने जयपुर शहर में किया । एक ओर जहाँ दीक्षा समारोह हुआ वहीं धार्मिक शिक्षा के लिए गुरुकुल की स्थापना एवं शहर में कई स्थानों पर रात्रि पाठशालाओं का संचालन भी हुआ। यहां आपके करें
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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