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________________ । भ्र चन्द्रसागरजी महाराज . . . ". जन्म : . .. भारत देश के महाराष्ट्र प्रान्त में नांदगांव नामक एक नगर है । वहां खण्डेलवाल जाति में जैनधर्म परायण नथमल . नामक श्रावकरत्न रहते थे। उनकी भार्या का नाम सीता था । वास्तव में, वह सीता ही । थी अर्थात् शीलवती और पति की आज्ञानुसार चलने वाली थी। सेठ नथमलजी और सीतावाई का सम्बन्ध जयकुमार सुलोचना के समान था। शालिवाहन संवत् १९०५ विक्रम संवत् १९४० मिती माघ कृष्णा त्रयोदशी, शनिवार की रात्रि को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में सीताबाई की पवित्र कुक्षि से एक पत्ररत्न ने जन्म लिया। जिसकी रूप-राशि लखकर सूर्य चन्द्रमा भी लज्जित हुए। पुत्र के मुखदर्शन से माता को अपार हर्ष हुआ। पिता ने हर्पित होकर कुटुम्बी जनों को उपहार दिये । सभी पारिवारिक जन हषित थे। दसवें दिन वालक का नामकरण संस्कार किया गया । जन्म नक्षत्रानुसार तो जन्म नाम भूरामल, भीमसेन, आदि होना चाहिये था परन्तु पुत्रोत्पत्ति से माता पिता को अपूर्व खुशी हुई थी अतः उन्होंने वालक का नाम - खुशालचन्द्र रखा हो ऐसा अनुमान लगाया जाता है । महाराजश्री के हस्तलिखित गुटके में जो जन्म तिथि .. End KE
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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