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________________ दिगम्बर जैन साधु निवाई, में मानस्तम्भ प्रतिष्ठा सानन्द सम्पन्न हुई । आचार्यश्री ने संघ सहित भारत के अनेक प्रान्तोंराजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में निर्भीकतापूर्वक विहार किया। विहार में कभी किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आई । मुक्तागिरि से खातेगांव का रास्ता बड़ा भयानक है, ऐसे मार्ग में भी महराज के तप के प्रभाव से कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। आपके सदुपदेश से प्रभावित होकर कई मांसाहारियों ने मांस भक्षण का त्याग किया, रात्रि भोजन का त्याग किया। महाराजश्री साधुचर्या के इतने पाबन्द थे कि अस्वस्थ दशा में भी कभी प्रमाद नहीं करते थे । अपस्मार और कम्पन रोगों ने भी आप पर आक्रमण किया किन्तु आपके तपोवल व पुण्यप्रभाव से वे शीघ्र दूर हो गए। नागौर में आपकी पीठ पर नारियल के आकार का एक भयानक फोड़ा हो गया. फिर भी महाराज ने अध्ययन-अध्यापन सम्बन्धी अपनी क्रियाओं में कभी प्रमाद नहीं किया। - वि० सं० २०१४ का वर्षायोग जयपुर खानियां में था। आप अस्वस्थ तो नहीं थे किन्तु आपकी शारीरिक दुर्बलता बढ़ती जा रही थी कि अचानक ही आश्विन कृष्णा अमावस्या को प्रातः १० बजकर ५० मिनट पर आप इस लोक और नश्वर देह को छोड़कर सुरलोक को प्रयाण कर गए। आचार्यश्री परमदयालु, स्वाध्यायशील, तपस्वी, अध्यात्मयोगी, निस्पृह साधु शिरोमणि थे। आपके आदर्श जीवन ने हजारों को त्याग मार्ग की ओर उन्मुख किया। ऐसे परमपावन, आचार्यप्रवर के चरणों में सश्रद्ध नमन ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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