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________________ लोक तुंग चौदह राजू है या मैं फिरा अपारा । समता धारे विन सब थानकं दुखही दुक्ख निहारा ।।२३ इन्द्र नरेन्दादिक की पदवी मिलना दुरलभ नाही । सम्यग्ज्ञान पावना दुरलम कह्यो श्रुतों के माही । सोलह कारण • तुम जानो.सर्व मुक्खकी दाता । सम्यग्दर्शन ज्ञान चरन त्रय धर्म जानिय भ्राता ॥२४॥ दया मई है धर्म धर्म दश विधि भी किया घखाना । वस्तु स्वभाव.धर्म कहते हैं अर्थ सवन इंक जाना ना मोह भाव कू त्याग धर्म • पालो मेरे भाई । जासें शिव नगरी के राजा हो वो यहां से जाई ॥२५॥ नर भव पाय काज यह करना चूकै सोय गमारा । . रिर यह समय कठिन है मिलना श्रीगुरु येम उचारा॥ . · आराधनं पाराघोभाई जबतक दुम में दम है। 5. पद्मावतिकी मूल सुधारो हाथ जोर वह नमि है ॥२६॥ ... ॥दोहा॥ ....... दर्शन झान चरित्र तप, हैं सब सुख दातार । ये ममघट मन्दिर वसो, करके निश्चल प्यार ॥२७ ॥ इति।।... चार धाराधना स्वरूप शुभम् .
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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