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________________ ( s ), राजा मधु ने समाधि मरण व मुनि अवस्था धारण की ताका. कथन तथा सप्त ऋपियों का चैत्यालय. विषय उपदेश श्री-पद्मपुराण ( जैन रामायण) से संक्षिप्त उधृत-. श्री पद्मपुराण पर्व (८३) नवासी ......... प्रारम्भ-सक्षेप से। . - जय श्रीरामचंद्र जो लक्षमण जी का तथा उनको रानियाँ सोता और विसल्या का अजोध्या में राज्याभिषेक हो चुका। तब महाप्रीति से भाई शत्रुधन से कहते भएं कि जो देश तुम्हें ६. सोलेबो। तव शंघन ने मथुप मांगी। तव राम बोले कि वहां राजा मधु का राज्य है और यह रावण को जमाई है अनेक युद्धों का जीतन हारा -उसको चमरेन्द्र ने. त्रिशूल रंल दिया है वह हरवंशियों में सूर्य संमान है उसका पुत्र लवणार्णव नाम का है दोनों महाशुरवीर हैं इस लिए मथुरा टार और राज्य लेवों । तव शत्रुघन ने न मानी और कहा कि मैं दशरय का पुत्र नहीं जो मधु राजा को न जीत् । इत्यादिः. और मयुरा को रवाना हुआ। तय राम बोले कि जर राजा मधु के हाथ प्रशूल. रल न होवे उस समय युद्धकरियो। मथुन नगरी के यमुना तट पर ढेरे जा लगाए 'और मालुम हुआ 'कि राजा मधु रानियों सहित वन क्रीड़ा करे है आज छटा दिन है संघ राज काज तुज प्रमाद के घश भया है विषयों के बंधन में पड़ा है। मंत्रियों ने विद्युत समझाया सो काहू की बात धारे नहीं । जैसे मृढ़ रोंगी वैद्य की औषधि न धारे । सो राजा शत्रुधन बलवान योदामों के सहित अर्ध रात्रि के समय सर्व लोकं प्रमादों थे और नगरी राना रहित थो। सो मथुरा में प्रवेश करता भया और वंदो जनों के शब्द होते भए कि पिना गरथ का पुत्र शत्रुधन जयवंत होवे । यह इन लोगों को
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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