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________________ ( &{ ) + दिल विशाल था, वह एक वेप्रायाकनार समन्दर था जिस में मनुष्य प्रेम की लहरें जोर शोर से उठती रहती थीं और सिर्फ मनुष्य ही क्यों उन्होने संसार के प्राणीमात्र की भलाई के लिए सब का त्याग किया जानदारों का खून बहाना रोकन े के लिए अपनी जिंदगी का खून कर दिया। यह अहिंसा की परम ज्योति वाली मूर्तियां हैं। वेदों की श्रुति "श्रहिंसा परमो धर्मः" कुछ इन्हीं पवित्र महान पुरुषों के जीवन में अमली सूरत इखियार करती हुई नजर आती है। ये दुनियाँ के जबरदस्त रिफार्मर, कबरदस्त उपकारी और बड़े ऊंचे दर्जे के उपदेशक और प्रचारक गुज़रे हैं । यह हमारी कीमो तवारीख (इतिहास) के कोमती ( बहुमूल्य ) रत्न हैं । तुम कहां और किन में धर्मात्मा प्राणियों की खोज़ करते हो इन्हीं को देखो इन से बेहतर (उत्तम) साइवे कमाल तुम को और कहां मिलेंगे । इन में त्याग था, इन में वैराग्य था, इन में धर्म का कमाल था यह इन्सानी कमजोरियों से बहुत ही ऊबे थे। इनका खिताब " जिन " है जिन्हों ने मोह माया को और मन और काया को जीत लिया था । यह तीर्थंकर हैं। इन में बनावद नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ साफ थी । ये वह लाखानी (अनौपम ) शखस्रीयतें हो गुजरी हैं जिनको जिस्मानी कमजोरियों व ऐवों के छिपाने के लिये किसी जाहिरी पोशाक की जरूरत लाइक नहीं हुई ! क्यो कि उन्होंने तप करके, जप करके योग का साधन करके अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण बना लिया था इत्यादि इत्यादि" " ('20) श्रीयुत तुकाराम कृष्ण शर्मा लट्टू बी० ए० पी-एच० डी० एम०आर० ए० एस० एम० ए० एस० वी०एम० जी०ओ० एस० मोफेसर संस्कृत सिलालेखादि के विषय के अध्यापक क्विन्स कालिज वनारस । ! - स्याद्वाद महा विद्यालय काशी के दशम वार्षिकोत्सव पर दिये हुए, व्याख्यान में से कुछ वाक्य उद्धृत ।
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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