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________________ एम० डी० पाण्डे थियोसोफिकल सोसायटी वनारस । - . मुझे जैन सिद्धांत का बहुत शौक है, क्योंकि कर्म सिद्धांत का इस में सूक्ष्मता से वर्णन किया गया. है।. . सम्मति नंवर १२ से १५ जन मित्र भाग १७ अङ्क १० में से संपह की गई हैं। सुप्रसिद्ध श्रीयुत महात्मा शिवव्रतलाल जी वर्मन, एम ५०, सम्पादक “साधु" "सरस्वतीभण्डारण, तत्वदर्शी मार्तण्ड "लक्ष्मीमण्डार", "सन्त सन्देश आदि उर्दू तया गगरी मासिक पत्र, रचयिता बिचार कल्पदु म, "विवेक, कल्पदुम”, “वदांत कल्पदु म," "कल्याण धर्म," कबीरजी का बीजक, आदि गंथ, तथा अनुवादक "विष्णु पुराणादि । - इन महात्मा महानुभाव द्वारा सम्पादित " साधु" नामक उर्दूमासिक पत्र के जनवरी सन १९११ के अङ्क में प्रकाशित "महावीर खामी का पवित्र जीवन" नामक लेख से उधृत कुछ वाक्य, जो न केवल श्री महावीर स्वामी के लिए किंतु ऐसे.सर्व जन तीर्थंकरों, जैनमुनियों तथा जैन महात्माओं के संबंध में कहे गए हैं:.; (१.) "गए दोनों जहान नजर से गुजर तेरे हुस्न का कोई वशर न. मिला . .. :: . : - (२) यह जीनियों के प्राचार्ग गुरु थे। पाकदिल, पाक खयाल, मुजस्सम-पाको व पाकीज़गी थे। हम इनके नाम पर. इनके काम पर और इनकी बेनजीर. नफ्सकुशी व रिाजत की मिसालपर, जिस कदर नाज (अमिभान).करें बजा (योग्य), है। (३) हिंदुओ ! अपने इन बुजुर्गों की इज्जत करना' । सीखो.......तुम इनके गुणों को देखो, उनको पवित्र सूरतों का दर्शन करो, उनको भावों को प्यार की निगाह से देखो, यह धम कम की मालकती हुई चमकती दमकती सूते हैं.........उनका . . .. . .. . .. ... .. .
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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