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________________ ( ६२ ) ( १ ) सबसे पहले इस भारत वर्ष में "रिषभदेव" "नाम के महर्षि उत्पन्न हुए, वे दयाशन भइपरिणामी, पहिले तीर्थंकर हुए जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्था को देखकर "सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान श्रीर सम्यचारित्र रूपो मोक्ष शास्त्र का उपदेश किया. 1 बस यह ही जिन दर्शन 'इस कल्प में हुआ। इसके पश्चात अजीतनाथ से लेकर महावीर तक तेईस तीर्थंकर अपने २ समय में श्रज्ञानी जीवों का मोह अंधकार नाश करते रहे। ८. ( १८ ) साहित्य रत्न डाक्टर रवीन्द्रनाथ टागोर कहते हैं कि:महावीर ने डोंडींग नाद से हिंद में ऐसा संदेश फैलाया 7 कि धर्म यह मात्र सामाजिक रूढ़ि नहीं है परंतु वास्तविक सत्य है । मोक्ष यह बाहरी क्रिया कांड पालने से नहीं मिलता, परंतु I सत्य धर्म स्वरूप में श्राश्रय होने से ही मिलता है । और धर्म और मनुष्य में कोई स्थाई भेद नहीं रह सकता । कहने आश्चर्य पैदा होता है कि इस शिक्षा ने समाज के हृदय में जड़ करके बैठी हुई भावना रूपी विघ्नों को त्वरा से भेद दिये और देश को वशीभूत कर लिया इसके पश्चात् वहुत समय तक इन क्षत्रिय उपदेशको के प्रभाव बल से ब्राह्मणा की सत्ता अभिभूत होगई थी । . ( १९ ) ... टी. पी. कुप्पस्वामी शास्त्री एम. ए. असिसटेन्ट गवर्न 1 मेन्ट म्युजियम तंजौर के एक अग्रेजी लेख का अनुवाद “ जैम, हितैषी - भाग १० अंक २ में छापा है उस में आपने बतलाया है. कि: ገ 7 7 (१) तीर्थंकर जिनसे जैनियों के विख्यात सिद्धांतों का प्रचार हुआ है आर्य्यं क्षत्रिय थे ( २ ) जैनी अवैदिक भारतीय- श्राय को 'एक विभाग है। ( 30 ) ; ¦ थी स्वामी विरुपाक्ष' बार्डयर “धर्म ं भूषण'' पण्डित 'वेद तीर्थ' 'विद्यानिधी' एम. ए. प्रोफेसर संस्कृत कालेज इन्दौर P.
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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