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________________ [ १२ । । मुहम्मद हाफिज सय्यद बी० ए० पल. ष्टी. थियोसोफिकल हाई स्कूल कानपुर लिखते हैं। - "मैं जैन सिद्धांत के सूचम तम्या से गहरा प्रेम करता हूं। [१३ ] .. रायबहादुर पुनन्दु नारायण सिंह एम. ए. वांकीपुर लिखते है-- ":" जैन धर्म पढ़ने को मेरो हार्दिक इच्छा है, क्योंकि मैं खियाल करता हूं कि व्यवहारिक योगाभ्यास के लिए यह साहित्य 'सबसे प्राचीन ( Oldest) है यह द की रीति रिवाजों से पृथक है इस में हिंदू धर्म से पूर्व की भात्मिक स्वतंत्रा विद्यमान है, जिसको परम पुरुषों ने अनुभव व प्रकाश किया है यह समय है कि हम इसके विषय में अधिक जानें। . . : .. . . . . . [ १४ ... “महा महोपाध्याय पं० गंगानाथ झा एम० ए० डी० एल० एल. इलाहावाद.: . "जब से मैंने शंकराचार्य द्वारा जैन सिद्धांत पर खंडन को पढ़ा है, तव से मुझे विश्वास टुश्रा कि इस सिद्धांत में बहुत कुछ है जिसको घेदांत के प्राचार्य ने नहीं समझा, और जो कुछ अव तक मैं जैन धर्म को जान सका हूं उस से मेरा यह विश्वास हद हुआ है कि यदि वह जैन धर्म को उसके असली प्रथों से देखने का कष्ट उठाता तो उनको जैन धर्म से विरोध करने की कोई बात नहीं मिलती। : . :..: . :: .. [:.१५ ]..:...: - नैपालचन्द राय अधिष्ठाता ब्रह्मचर्याश्रम शांतिनिकेतन घोलपुर:-मुझको जैन तीर्थंकरों को शिक्षा पर अतिशय भक्ति है।
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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