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________________ ..... . ९ विगम्बर जैन के नाक में पट्टा लिया पर एक लेखं : निकला है। जिस पण्डित मदनलाल जी ने लिखा है। अापने चार पट्टीयलियां अपने पास बताई हैं। जिन में पकली यही है जो कि कानपुर को प्रदर्शनी में रखी गई: यो और जिस के आधार पर हमने प्रथम' अर में सवाल आचार्यों के नाम दिए थे। * संवत् तिथि आचार्य : . जाति ३६ आसोज मुदी १४, मारनन्दि : जैसवाल २११ फागुन वदी १.० यशानन्दि... . १५८ ६४२. श्रावण मुर्दी ५. मेरुकीति - दूसरी पट्टीवली आपको भट्टारक मुनीन्द्र कीर्ति से प्राप्त हुई है। उसमें उक्त आचार्यों का कुछ अधिक विवरण है; उसे हम नीचे उद्धृत करते हैं। मिती प्रांसोज सुदी १४ सम्बत ३६ स्वामी माघनन्दि आपने जैसवाल कुल. को पवित्र किया था आप गृहस्य अवस्था में २० वर्ष पर्यस्त रहे ! आप परम योगी थे। आपने ४४ वर्ष पर्यन्त मुनिपद मुशोभित किया था। आपको शक्ति , अगाध, पोशान भी अलौकिक था.। आप आचार्य पद पर वर्ष ४ महीने २६ दिनं विराजमान रहे। अत समय आप साधुपद को ग्रहण कर समाधिस्थ हो स्वर्गस्य हुए। आपकी सर्व श्रायुधः वर्ष ५ महीने की थी। माघनंदि नाम के कई आचार्य हो गए हैं। क्या ये माधनंदि मुनि बहे जो कुम्भकार घरपर रहेथे ? आपको बनाईष्टुई पूजा अत्यंत ललित मिलती हैं। .. ... मिती फागुन वदी ११.०२११ के. दिन श्री भगवान् । यशोनदि पद पर विराजे नापने भी जैसवाल जाति को अपन: जन्म से पवित्र किया था। यथा नाम तथा गुण रूप सर्वत्र प्रसिद्ध थे। आपकी बनाई दुई पञ्चः परमेष्ठी पूजा हृदय हारिणी और मनोहर है। आप गृहस्थ अवस्था में मात्र १६ वर्ष रहे। आपके भाव अत्यन्त विशुद्ध और संसार से अतिशय विरक्त थे। नित्य ... 11
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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