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________________ () पद (मुनि):१७ वर्ष पर्यन्त घोर तपश्चरण द्वारा व्यतीत किया श्राचार्य पद पर आप ४६ वर्ष ४ मास और १ दिन विराजमान रहे। पूर्ण श्रायुः ९षमास और १३ दिन को थो। चार दिन । अनशन नामक स यास को धारण कर समाधिस्थ एं। आपके शिप्य प्रतिध्य मुनि और ब्रह्मचारी अगणित थे। आपने बिहार - (देशाटन ) खूब किया था। राजा महाराजा आप परम भक्त थे। .. २६-गवण वदी ५ सम्बत ६४२ भी मेरुकीनि महाराज ने आचार्य पंद को भूपित किया। पाठवें वर्ष मुन्याभम में विद्याभ्यः ययन करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर गए। और. १२.बई: ३ मासं पर्यन्त समस्त शालों का पठन कर. समस्त विषयों में पूर्व प्रवीण हो गए। आपकी विद्वत्ता को समता करने वाला उस समर्थ शायद ही कोई विद्वान हो। आपने ४ वर्ष ३ मांस - तया. १३ दिन. पर्यन्त प्राचार्य पद को अलस्त किया जैसवाल कुल को प्रकाशित करने वाले श्राप थे। पूर्ण आयु ६३ वर्ग १ माह और कुछ दिनःथी। उक्त तीन प्राचार्यों के अतिरिक्त इस पहावतो में साया पर यशोकोति प्राचार्य को भी जैसवाल. लिखा है। किंतु आगे कोष्टक में 'जयलवाल भी लिखा है । और पहली पट्टावली में आपक जायलंबाल' हीलिखाहै कंछभी हो हम उनका वर्णनभो उद्घृतं करते:, -मिती जेठ सुदी १० सम्बत १५३ के दिन श्री प्राचार्य • 'यशोकीर्ति महाराज ने आचार्य पद को विभूपित किया । आप बालपन से ही विरक्त थे। आपकी उप शक्ति दिव्यं यो ग्रहस्य "अवस्था में १२वर्ष मात्र ही रहे.। आप जैसवाल (जायलवाल) * थे।२१ वर्ग. पर्यंत आप मुनि निभ्य रहें आपने ५० वर्ष मास और २१ दिन आचार्य पद में व्यतीत किए। आपको पूर्ण आयु. वर्प और १५ दिन की थी। आप के बाद.५ दिन पीत. आचार्य पद शून्य रहा । : :......... : : तीसरी पट्टावनी संस्कृत की है। वह ईडर के भंडार से प्राप्त हुई है। उसमें प्रायः प्राचार्यों का नाम मात्र है। नीचे के श्लोकों में जैसवाल आचार्यों का नाम है. जायसवाल और लेसंधान को आपने एक से लिबास पर प्रकाश डालना चाहिए। सम्पादक .. .. saiamwim . ... .. .... . . . .
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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