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________________ हमारे बहुत से भाई वहुधा यह कहते हैं कि हंध वैश्य केनिगम है। धर्म का अवलोकन करे । न्याय पूर्वक मार्ग ग्रहण करें .. पदमशुमारी में “जैनियों को जाति अलग रक्खी गई हैं इसलि हर जैन व्यक्ति को "जैन जाति कहना या लिखना या लिखवाना .... ...' कुछ जातियों का संक्षेप इतिहास प्रकट करते हैं। नोट १ - सवाल जैन अङ्कः-११. भाग१ पौष माघ शुक्ला सम्बत १७५:वीर सम्बत २४४५. में प्रकाशित हुआ है जैसंधान (जैसनेर वाल) में कोई भेद नहीं इसके तीन. मेद हुए उपरोचियां तरोचिया और वरैया। अलीगढ़ में संजाजोगसिंहः थे वहाँ पर जो भंडारी के काम पर रहे वे कौल भजारी कहाये। अलीगढ़ को कौल भी कहते हैं। जिले बुलन्दशहर में कुछ टाकुर लोग है उहाके "जैसवालो से गोत्र मिलते हैं। जैसवाल समल भारत में है परन्तु झालरापाटन आग बलीगढ़, धोलपुर, वालियर, उज्जैनादि के पास पास ज्यादा है। वे प्राय राज्य व जमीदारी कार्य में हैं । पूर्वजों से बैं"दीवानजी तथा पटवारी के पदों से माय: पुकारे जाते हैं जैसनेर दक्षिण देश के राज्य पर यापति याने से वे : भागकर इधर आये थे. वैश्यों के साथ रह कर और वैसा कार्य: करने से प्रायविश्य कहाने लगे। जैसनेर घोल लें जैसवाल, समय परिवर्तन द्वारा होगया जैसनेर का राजा इक्ष्वाकुशंका क्षत्री जैनी था उनके कुटुम्बी जैसनर वाले कहलाते थे और कईएक प्रमाणों से जैसवाल, नत्री सिद्ध होते हैं। सवाल जाति प्रतादि से . .. . . ... " प्राचीन जैसवाल आचार्य । नोट २-आज हम अपने प्रिय पाठकों को कुछ प्राचीन जैसवाल प्राचार्यों का संक्षिप्त परिचय देते हैं । यह वर्णन प्राचीन पहाव
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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