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________________ પૂર १२. देवदत्त : उनका तीसरा विरोधी देवदत्त नामक उन्हींका एक शिष्य था । देवदत्त शाक्य वंश का ही था । वह ऐश्वर्य का अत्यंत लांभी था । उसे मान और बड़प्पन चाहिए था । उसने किसी राजकुमार को प्रसन्न कर अपना कार्य सिद्ध करने का विचार किया । बुद्ध १३. राजा विबिसार के एक पुत्र का नाम अजातशत्रु था । देवदत्त ने असे फुसलाकर अपने वश में कर लिया । १४ बाद में वह बुद्ध के पास आकर कहने लगा : "आप अब बूढ़े हो गए हैं इसलिए सारे भिक्षुओं का मुझे नायक बना दें और आप अब शांति से शेष जीवन व्यतीत करें ।" १५. बुद्ध ने यह माँग स्वीकार नहीं की। उन्होने कहा : "तुम इस अधिकारके योग्य नहीं हो ।" १६. देवदत्त को इससे अपमान मालूम हुआ । उसने बुद्ध बदला लेने की मन में ठान ली । से १७. वह अजातशत्रु के पास जाकर बोला : “कुमार, मनुष्यशरीर का भरोसा नही । कब मर जावेंगे, कहा नहीं जा सकता | इसलिए जो कुछ प्राप्त करना है उसे जल्दी ही कर लेना चाहिए । इसका कोई निश्चय नही है कि तुम पहले मरोगे या तुम्हारे पिता । तुम्हें राज्य मिलने के पहले ही तुम्हारी मृत्यु होना संभव है । इसलिए राजा के मरने की राह न देख उसे मारकर तुम राजा बनो और बुद्ध को मारकर मै बुद्ध वनूँगा ।"
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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